हरिद्वार। भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का पर्व महाशिवरात्रि सनातन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। शिवरात्रि का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। एक फाल्गुन के महीने में तो दूसरा श्रावण मास में। फाल्गुन के महीने की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है। महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखकर भगवान की बहुविधि पूजन करने का विधान ह ै। इस दिन रात्रि के चार प्रहरों में शिव पूजन का विशेष महत्व बताया गया है।
पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक इस बार महा शिवरात्रि का पर्व 21 फरवरी को मनाया जाएगा। बताया कि महाशिवरात्रि 21 फरवरी को शाम 5 बजकर 20 मिनट से त्रयोदशी तिथि समाप्त हो जाएगी और चतुर्दशी तिथि शुरू होगी। चतुर्दशी तिथि को ही शिवरात्रि मनाई जाती है। बताया कि शिवरात्रि तिथि रात्रि में जब होती है तभी मनाई शिवरात्रि पूजन को विधान है। बताया कि 21 फरवरी को शिवरात्रि शाम को 5 बजकर 20 मिनट से शुरु होकर 22 फरवरी को शाम 7 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। इस कारण शिवरात्रि व्रत और पूजन 21 फरवरी को करना श्रेयस्कर होगा। श्री शुक्ल के मुताबिक जो लोग 21 को शिवरात्रि पूजन और व्रत नहीं कर सकते है। वह 22 फरवरी को भी कर सकते हैं।
बताया कि शिवरात्रि पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का पर्व है। श्री शुक्ला ने बताया कि शिवरात्रि पर अलग-अलग मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पूजन का अलग-अलग विधान है। किन्तु जल और विल्वपत्र अर्पित करने मात्र से भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। बताया कि भगवान शिव को जल धारा प्रिय है। इस कारण गंगाजल से जो भगवान का अभिषेक करते हैं उनके समूल पापों को नाश हो जाता है।
क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि
यूं तो प्रति माह शिवरात्रि का पर्व होता है। किन्तु श्रावण और फाल्गुन मास में आने वाली शिवरात्रि को विशेष महत्व सनातन धर्म में कहा गया है। मान्यता है फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि सबसे बड़ी शिवरात्रि होती है।
पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी दिन पहली बार शिवलिंग की भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने पूजा की थी। मान्यता है कि इस घटना के चलते महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है। माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने ही महाशिवरात्रि के दिन ही शिवजी के रुद्र रूप का प्रकट किया था।
एक अन्य कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसी कथा के चलते माना जाता है कि कुवांरी कन्याओं द्वारा महाशिवरात्रि का व्रत रखने से शादी का संयोग जल्दी बनता है। वहीं एक और कथा के मुताबिक भगवान शिव द्वारा विष पीकर पूरे संसार को इससे बचाने की घटना के उपलक्ष में महाशिवरात्रि मनाई जाती है। दरअसल, सागर मंथन के दौरान जब अमृत के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था, तब अमृत से पहले सागर से कालकूट नाम का विष निकला। ये विष इतना खतरनाक था कि इससे पूरा ब्रह्मांड नष्ट किया जा सकता था। लेकिन इसे सिर्फ भगवान शिव ही नष्ट कर सकते थे। तब भगवान शिव ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। इससे उनका कंठ नीला हो गया। इस घटना के बाद से भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा। उन्होंने बताया कि शिवरात्रि पर रात्रि में चतुर्थ प्रहर की पूजा का विधान है। बताया कि शिकार के लिए जंगल में गया एक बहेलिया शिकार की तलाश में विल्व वृक्ष के ऊपर चढ़कर बैठ गया। रात्रि में नींद का झोंका आने पर पेड़ के हिलने से कुछ पेड़ के पत्ते पेड़ के नीचे स्थापित शिवलिंग पर गिरे। ऐसा रात्रि में चार बार हुआ। चतुर्थ प्रहर के बाद भगवान प्रकट हुए और बहेलिए को वरदान दिया। इस कारण शिवरात्रि पर चतुर्थ प्रहर की पूजा का विधान है।