वैश्विक संविधान का आधार एकात्मता व आत्मतत्व होः वीरेन्द्रानंद

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हरिद्वार। सम्पूर्ण विश्व में शांति व एकता स्थापन हेतु गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय में आज बुद्धिजीवी व सन्यासीजनों द्वारा हिन्द राष्ट्र विधान पर परिचर्चा की गई। कार्यक्रम में मुख्यअतिथि के रूप प्रोफेसर रूपकिशोर शास्त्री, कुलपति गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय तथा अध्यक्ष के रूप में महामण्डलेश्वर योगी वीरेन्द्रानंद गिरी जूना अखाड़ा उपस्थित थे। परिचर्चा में प्रस्तावित हिन्द राष्ट्र विधान (वैश्विक संविधान) के एक-एक अनुच्छेद पर गहनता से विचार किया गया। कुलपति प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने कहा कि हिन्द राष्ट्र विधान पर अपने विचार रखते हुए कहा कि हिन्द शब्द एक व्यापक शब्द है, जिसका अर्थ है हीनता का नाश। इसी नाम से संविधान की रचना होनी चाहिए। महामंडलेश्वर वीरेन्द्रानंद गिरी ने कहा कि इस वैश्विक संविधान का आधार एकात्मता व आत्मतत्व होना चाहिए ताकि यह भावधारा विश्व में रहने वाले सभी लोगों तक पहुचे। इस दौरान सन्यासीजनों ने गुरुकुल शिक्षा पद्धति को वैश्विक स्तर पुनः जीवित करने को कहा ताकि चरित्रवान व्यक्तियों का निर्माण हो सके।
कार्यक्रम में वक्ता के रुप में उपस्थित रवीना बरिहा, पूर्व सलाहकार, भारत सरकार ने बताया कि हिन्द राष्ट्र विधान (वैश्विक संविधान) का उद्देश्य विश्व के सभी नागरिकों के अन्दर एक वैश्विक परिवार (वसुधैव कुटुंबकम) की भावना को स्थापित करना है। मंच संचालक भोलानाथ दिनकर महाराज ने कहा कि हिन्द राष्ट्र नागरिक आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही रुप में उन्नत होकर सहअस्तिव व मानवीय मूल्यों के आधार पर नियमों से अपनी सामाजिक व्यवस्थाओं का संचालन करते हैं। वैश्विक संविधान के प्रणेता गज अरविन्द ने कहा कि हिन्द राष्ट्र, विश्व के उन देशोंध्नागरिकों के समूह का नाम होगा, एकात्मता के आधार पर वसुधैव कुटुंबकम की भावना को स्थापित करने प्रतिबद्ध होंगे। हिन्द राष्ट्र कोई राजनीतिक व प्रशासनिक संरचना नहीं होगी बल्कि आंतरिक व बाह्य मानवीय गुणों पर आधारित नियमों से संचालित एक सामाजिक व्यवस्था होगी। इस कार्यक्रम को सफल बनाने महर्षि अरविंद फाउण्डेशन के कार्यकर्ता विजय सिंह तथा बलवंत पालीवाल ने बताया कि आज वैश्विक स्तर पर मानवता के मूल्यों पर आधारित संविधान लाने की आवश्यकता है।

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