प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने का अंजाम भुगत रहा विश्व: प्रवीण अरोड़ा

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दैनिक बद्री विशाल
रुड़की/संवाददाता

रुड़की निवासी समाजसेवी प्रवीण अरोड़ा ने भारत के महामहिम राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक ज्ञापन भेजकर बताया कि जबसे देश में लॉकडाउन लगा हैं। इंसान को शोषणकर्ता ही पाया। चाहे ताकतवर कमजोर का करें, या पैसेवाला मजदूर का। किसान जमीन का, व्यापारी ग्राहक का। सबसे बड़ी बात यह है कि सारे बुद्धिमान लोग मिलकर प्रकृति माता का शोषण कर रहे हैं। वैज्ञानिक कह रहे है कि कोरोना नामक वायरस हैं, यह रोज नया रुप बदल रहा हैं। यह रोग जीव को कैसे जकड़ेगा, इसकी कोई वैक्सीन बनायेगा। पैसे लगाकर भी यह गारंटी नहीं कि यह वैक्सीन बनते ही कोरोना को कंट्रोल कर लें। क्या प्रकृति से लड़ा जा सकता हैं, इतनी शक्ति, न ज्ञान, न हिम्मत किसी में नहीं हैं। वैज्ञानिक भाई कह रहे हैं कि यह चीन का जैविक हथियार हैं। पाषणकाल में शिकारी अपनी पूर्ति के लिए जीव हत्या कर उसका भक्षण करते थे। हम सभ्यता के परिवेश में आये, खेती हर हो गये, धरती का सीना चीरा, हल चलाया, जहर खिलाया और प्रकृति ने हम सबको लाल ही समझा। उन्होंने कहा कि प्रकृति की गोद से कोयला, हीरे, पन्ने, सोना-चांदी मिले, लोहा मिला, पत्थर मिले, इन्हें खोदकर गगनचुंबी करोड़ों टन वजन एक ही जगह दबाव बना दिया। सबमर्शिबल बोर्ड से अंधाधुंध पानी सतह पर बर्बाद करने का चलन चल रहा हैं। इसके कारण धरती की परत और जल की सतह में रिक्ता आई। जब भी कोई बड़ा भूकंप आयेगा, इन बड़ी इमारतों को नेस्तनाबूद कर देगा। 60 दिन के लॉकडाउन में वायुण्डल साफ, गंगा-नदियों में स्वयं ही स्वच्छता का बदलाव आया, अरबों खर्च कर जो हम नहीं पा सके, वह निःशुल्क मिल गया। प्रकृति ने अब यह तरीका अपनाया है हम सबको समझाने के लिए। जब प्रकृति पचास साल की गंदगी को 15 दिन में साफ करने में समर्थ हैं। उसके बावजूद भी इंसान प्रकृति के दोहन को कम नही कर रहा है। उन्होंने सरकार से मांग की कि माह के प्रत्येक रविवार को लॉकडाउन किया जाये, जो जहां हैं, वह घर में रहे, केवल चिकित्सा सेवा और दुर्घटनाओं से बचाव वाली सेवा सुचारू रहे। मतलब हर साल 15 दिन केवल प्रकृति के नाम के होने चाहिए। फिर देखो कैसी खुशहाली आयेगी।

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