हरिद्वार। छठ पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संध्या के समय डूबते सूर्य देव को अर्घ्य देकर छट व्रतधारियों ने सुख-समृद्धि की मंगल कामना की। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए बड़ी संख्या में बिहार प्रांत के लोगों का गंगा के तटों पर जमावड़ा लगा रहा। भीड़ के कारण हरिद्वार के गंगा घाटों पर मिनी बिहार का रूप दिखायी दिया। सर्वाधिक भीड़ प्रेमनगर आश्रम घाट व हरकी पैड़ी पर रही। गंगा में पानी कम होने कें कारण लोगों को परेशानी का भी सामना करना पड़ा।
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए सांयकाल छट व्रतधारी बांस की टोकरी में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि से अर्घ्य का सूप सजाया गया। जिसके बाद व्रतधारियों ने अपने परिवार के साथ सूर्य देव को अर्घ्य देकर परिवार की मंगल कामना की। व्रतधारियों ने शनिवार को कार्तिक शुक्ल पष्ठी को छठ प्रसाद बनाया। जिसमें ठेकुआ और चावल के लड्डू बनाए गए। इसके अलावा चढ़ावे के रूप में लाया गया सांचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल किया। अस्ताचल गामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के लिए सभी छठव्रती गंगा के तटों पर एकत्रित हुए। घरों से गंगा तट पर लोग ढ़ोल नगाड़ों के साथ छठ मैया के जयकारे लगाते हुए गंगा तट पर पहुंचे। घाट पर पवहुंचकर अस्ताचलगामी सूर्य को दूध और अर्घ्य देकर पूजा-अर्चना की।
छठ पर्व के संबंध में पं. मनोज झा ने बताया कि छठ पूजा की कई कथाएं हैं। जिनमंे से मुख्य कथा के रूप में महर्षि कश्यप और राजा की कथा सुनाई जाती है। इस कथा के अनुसार एक राजा और रानी के कोई संतान नहीं थी। राजा और रानी काफी दुखी थे। एक दिन महर्षि कश्यप के आशीर्वाद से राजा और रानी के घर संतान उत्पन्न हुई। दुर्भाग्य से राजा और रानी के यहां जो संतान पैदा हुई थी वो मृत अवस्था में थी और इस घटना से राजा और रानी बहुत दुखी हुए। इसके बाद राजा और रानी आत्महत्या करने के लिए एक घाट पर पहुंचे। जब वो आत्महत्या करने जा रहे थे तभी वहां ब्रह्मा की मानस पुत्री ने उन्हें दर्शन दिया। राजा और रानी को अपना परिचय देते हुए उस देवी ने अपना नाम छठी बताया और उनकी पूजा अर्चना करने की बात कही। राजा ने वैसा ही किया और उसको संतान का सुख प्राप्त हुआ। कार्तिक मास के शुक्ला पक्ष को यह घटना घटी थी। इसी कारण से कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को छठ पूजा का विधान है। शनिवार को बड़ी संख्या में लोगों ने छठ पूजा कर परिवार में सुख-समृद्धि की कामना की। रविवार को उदय होते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ चार दिनी छठ पर्व का समापना होगा। इसके पयचात ही व्रतधारी 36 घंटे का व्रत का परायण कर पर्व का समापन करेंगे।