विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में संस्कृत का स्थान सर्वोपरिः राज्यपाल

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29 छात्र-छात्राओं को मिले स्वर्ण पदक, 13 को मिली पीएचडी की उपाधि
हरिद्वार।
उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार का नवम दीक्षांत समारोह कुलाधिपति, राज्यपाल की गरिमामय उपस्थिति में विश्वविद्यालय परिसर में सम्पन्न हुआ। दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करते हुए राज्यपाल, (ले.ज. सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने सत्र 2019-20 एवं 2020-21 के सर्वाधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक एवं उपाधियाँ प्रदान की।
दीक्षान्त समारोह को सम्बोधित करते हुए राज्यपाल गुुरमीत सिंह ने कहा कि मानवता के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचने का सर्वोत्तम साधन शिक्षा ही है। शिक्षा समाज की बुराइयों को दूर कर नयी दिशा प्रदान करती है। शिक्षा सामाजिक परिवर्तन की कुंजी है, जिसके द्वारा सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त समस्त प्रतिकूलताओं को अनुकूलताओं में बदला जा सकता है। यह कभी पूर्ण नहीं होती, बल्कि यह सीखने की सतत प्रक्रिया है, जो आजीवन चलती रहती है। उन्होंने कहा कि विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में संस्कृत का स्थान सर्वोपरि है। यह भाषा अत्यन्त ही समृद्ध, वैज्ञानिक, सुव्यवस्थित एवं अनेक विशेषताओं से विशिष्ट है। अनगिनत विशेषताओं के कारण विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि यदि संस्कृत को डिजिटल भाषा में प्रयोग करने की तकनीक विकसित कर ली जाय तो भाषा जगत के साथ-साथ कम्प्यूटर एवं विज्ञान क्षेत्र में अभूतपूर्व परिणाम देखे जा सकते हैं। अब तक के अध्ययन से स्पष्ट हो चुका है कि संस्कृत कम्प्यूटर प्रोगामिंग के लिए सबसे उपयुक्त भाषा है और इस दिशा में प्रयास भी शुरु हो चुका है। हमारे देश में भी संस्कृत के प्रति लोगों में एक नई जागरूकता देखने को मिल रही है। संस्कृत में अनुसन्धान हेतु लोगों में रुचि बढ़ी है। संस्कृत में संगीत स्त्रोत्र आदि का प्रचार बहुत तेजी से हो रहा है। उन्होंने कहाकि अब संस्कृत में फिल्में भी बनने लगी। भारत का राजनीतिक मानचित्र भी संस्कृत में उपलब्ध है, जिसके अनुवाद एवं संशोधन में उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। राज्यपाल ने कहाकि संस्कृत एवं शास्त्रों के संरक्षण, संवर्धन, पठन-पाठन, प्रचार-प्रसार आदि के लिए तथा आधुनिकता से इसे जोड़कर प्रासंगिक बनाने के लिए संस्कृत-संस्कृति नामक टीवी चैनल चलाने के लिए विश्वविद्यालय प्रयासरत है।
राज्यपाल ने कहा कि संस्कृत रहस्यमयी भाषा है संस्कृत जिन्हें समझ आ गयी उन्हें सब कुछ आ गया। उन्होंने व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए कहा कि हनुमान चालीसा रहस्य नामक पुस्तक जब उन्होंने पढ़ा तो संस्कृत की महत्ता का पता चला। संस्कृत को पढ़कर ही हनुमान चालीसा के सभी रहस्य हम समझ सकेंगे।
दीक्षान्त समारोह में उपाधि एवं स्वर्णपदक प्राप्त स्नातकों एवं उपाधिधारकों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि आप शिक्षार्थ यहां आये थे, अब सेवार्थ यहां से जायेंगे। आपने जो भी ज्ञान अर्जित किया है, उस ज्ञान रत्न के प्रकाश से सम्पूर्ण समाज को प्रकाशित करना होगा। अपनी शिक्षा, संस्कार, सेवा, समर्पण, कौशल एवं अनुशासन के द्वारा समाज एवं राष्ट्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित करना होगा।
समारोह में स्वागत भाषण देते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. देवीप्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि यह वर्ष हमारे लिए उपलब्धियों भरा रहा है। उन्होंने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को प्रस्तुत करते हुए कहा कि इस वर्ष विश्वविद्यालय एवं संस्कृत के अनेक कार्य हुए हैं।
विशिष्ट अतिथि संस्कृत शिक्षा सचिव, चन्द्रेश कुमार यादव ने उपाधि एवं स्वर्णपदक धारकों को बधाई देते हुए कहा कि आधुनिक ज्ञान विज्ञान से जुड़कर यहाँ के विद्यार्थी विश्व में प्रतिमान स्थापित कर सकते हैं,छात्र-छात्राओं पर संस्कृत के प्रचार-प्रसार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
इस अवसर पर राज्यपाल ने 13 शोधार्थियों को पीएच.डी. की उपाधि प्रदान की। इसके अतिरिक्त सत्र 2019-20 एवं 2020-21 के 29 छात्र-छात्राआंें को स्वर्ण पदक प्रदान किये। दीक्षान्त समारोह में कुल 5630 उपाधियाँ प्रदान की गईं।
संचालन व्याकरण विभागाध्यक्ष, डॉ. शैलेश कुमार तिवारी ने किया।
इस मौके पर उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रो. ओमप्रकाश नेगी, गुरुकुल कांगड़ी सम विश्वविद्यालय, हरिद्वार के कुलपति प्रो. रूप किशोर शास्त्री सहित मा0 कार्यपरिषद् के सदस्य, सभी संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष/प्रभारी विभागाध्यक्ष, समस्त वरिष्ठ प्रोफेसर, प्रोफेसर, सह-आचार्य, प्राध्यापकगण, उपकुलसचिव दिनेश कुमार, विश्वविद्यालय के समस्त कर्मचारी एवं छात्र-छात्रायें उपस्थित रहे।

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