हरिद्वार। जैसे-जैसे कुंभ मेला नजदीक आता जा रहा है। वैसे-वैसे मेले की तैयारियां भी गति पकड़ती जा रही है। सरकार से लेकर प्रशासन और अखाड़ों के साथ संत भी मेले की तैयारियों में जुटे हैं। इनमें सबसे खास तैयारी अखाड़ों में शुरू हो रही है। कुंभ के लिए अखाड़ों में मंड़ी सजने की तैयारियां होने लगी हैं और बोली लगाने के लिए संतों की भी बड़ी तादात तैयार है।
जैसा की मंडियों में होता है कि जो बड़ी बोली लगाएगा माल उसी का होगा। ठीक वैसे ही संतों में महामण्डलेश्वर बनने के इव्छुक संत बोली लगाने की तैयारी कर रहे हैं।
सभी जानते हैं कि किसी भी संत को अखाड़ा सभी अखाड़ों के संत-महंतों और पंचों की मौजूदगी में महामण्डलेश्वर पद पर अभिषिक्त करता है। पूर्व में मण्डलेश्वर को मण्डलीश्वर कहा जाता था और विद्वान की इस मण्डली का नेतृत्व करता था। किन्तु वर्तमान में विद्वता को ताक पर रखकर अधिक धन खर्च करने वाले को मण्डलेश्वर बना दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर विगत कुंभ में एक संत को जो लोगों का शनि उतारने का दावा करता था। एक अखाड़ो ने उसको मण्डलेश्वर बनाने के लिए उसी का शनि उतार दिया। आज उस मण्डलेश्वर की स्थिति यह है कि आज उनके दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं। मण्डलेश्वर बनाने के लिए उस मण्डलेश्वर से लाखों रुपये का चढ़ावा लिया गया और लाखों खर्च करवाए गए। अब फिर से कुंभ पर्व दस्तक दे चुका है। ऐसे में अखाड़ों ने मण्डलेश्वर बनाने के लिए मंडी तैयारी करनी शुरू कर दी है। और इस मंडी में बड़े-बड़े संत बोली लगाने के लिए तैयार भी हैं। सूत्रों के मुताबिक इस बार भी करीब 50 संत मण्डलेश्वर बनने की होड़ में शामिल हैं। यानि की अखाड़ों को पौ बारह। वैसे तो विद्वता के आधार पर मण्डलेश्वर बनाए जाते थे, किन्तु आज पैसा खर्च कर कुछ भी बना जा सकता है। यदि कोई चार पैर वाला भी यदि मोटी रकम अखाड़े के संतों को भेंट चढ़ा दें तो रातों-रात उसे भी मण्डलेश्वर की बात छोड़िए आचार्य मण्डलेश्वर तक बनाया जा सकता है। कई ऐसे मण्डलेश्वर अखाड़ों ने बनाए हैं जिनके पास उनका आसन उठाने तक के लिए कोई व्यक्ति नहीं हैं। जो महिलाओं और पुरूषों के साथ अतंरंग संबंध स्थापित करते हैं। जो बीमारी के नाम पर भक्तों से लाखों ठगकर अपने ऐशोआराम पर खर्च करते हैं। जिन्हें न तो धर्म के संबंध में ज्ञान है और न ही उनका संतई से दूर-दूर तक कोई लेना-देना। बस इतना जरूर है कि वह अखाड़ों को मुंह मांगी रकम भेंट स्वरूप दे सकते हैं जिस कारण उन्हें मण्डलेश्वर जैसे पद पर सुशोभित कर दिया जाता है। यही कारण रहा की शराब की दुकान चलाने वाले को भी मण्डलेश्वर बना दिया गया था। इतना ही नहीं जयपुर राजस्थान में कारोबार करने वाला तो एक अखाड़े का आचार्य मण्डलेश्वर तक बना हुआ है। इतना ही नहीं आचार्य मण्डलेश्वर बनाने के लिए अखाड़े कई करोड़ में पद का सौदा करते हैं और जक तब व्यक्ति पद पर रहता है उसका किसी न किसी रूप में खून पीने का सिलसिला जारी रहता है। प्रत्येक कुंभ में पुकार व भेंट आदि के नाम पर करोड़ों रुपये कमाने वाले अखाड़े के संत इतना होने के बाद भी सरकार के समक्ष हाथ फैला रहे हैं। धन बल के आगे किसी को भी मण्डलेश्वर बनाकर अखाड़े सनातन धर्म का ह्ास करने का कार्य कर रहे है। ऐसा कर यह धर्म रक्षा नहीं उसका विनाश करने में तुले हैं।