भगवान बद्रीविशाल के द्वार दिव्यांग कृष्णपाल के स्वाभिमान की अनसुनी कहानी;दूसरों के लिए बनी प्रेरणास्रोत

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रिपोर्ट :- गणेश वैद

दिव्यांग होना कोई अभिशाप नहीं बल्कि सही सलामत होते हुए भीख मांगना अभिशाप जरूर है। लेकिन ये बात झारखंड निवासी एक दिव्यांग व्यक्ति पर लागू नहीं होती। जो ना सिर्फ स्वाभिमान से जीवन यापन कर रहा है बल्कि दूसरों को स्वाभिमान से जीने की प्रेरणा भी से रहा है। हम बात कर रहे हैं झारखंड के दुमका जिले के रहने वाले 35 वर्षीय कृष्णपाल की, जो गले मेे डलिया डालकर श्री बद्रीनाथ धाम में फेरी लगाकर प्रसाद,पूजा सामग्री व सिंधुर आदि बेच कर जीवन यापन कर रहे हैं। दिव्यांग होते हुए भी कृष्णपाल की खुदगर्जी उन भिखमंगो के लिए प्रेरणा है जो शरीर से स्वस्थ होते हुए भी भीख मांगकर जीवन गुजार रहे हैं। 

कृष्णपाल के बारे में जो जानकारी मिली उसके मुताबिक गरीब घर में जन्में कृष्णपाल स्कूल तो गये लेकिन अधिक पढ लिख नहीं सके। उनकी इच्छा थी कि वह बदरीनाथ धाम पहुंच जाये लेकिन यह संभव नही हो रहा था। वर्ष 2007 में पहली बार किसी तरह अकेले जिला दुमका झारखंड से श्री बदरीनाथ धाम पहुंचे। श्री बदरीनाथ मंदिर के सिंह द्वार पर माथा टेका। वह कुछ दिन बदरीनाथ धाम में घूमे फिरे तो लोगों ने दिव्यांगता के कारण उन्हें दानस्वरूप पैसे देने शुरू किये एक दो दिन भीख के पैसे लेने के बाद उन्हें बहुत आत्मग्लानि हुई उन्होंने निश्चय किया कि वह कभी न तो भीख मांगेंगे न हीं किसी की दान में दी हुई वस्तु स्वीकारेंगे। कुछ ऐसा करेंगे जिससे लोग उन्हें दया का पात्र न समझे। इसके बाद कृष्णपाल ने निश्चय किया कि वह भगवान बड़ीनाथ का प्रसाद बेचकर अपना जीवन यापन करेंगे। 

दिव्यांग होते हुए भी कई खूबियां है उनमें

दिव्यांग होते हुए भी कृष्णपाल में कई ऐसी खूबियां है जो सामान्य व्यक्ति मेे नहीं है। वह मौसम का पूर्वानुमान बता देते है। इसके अलावा वह जिस व्यक्ति की आवाज व नाम एक बार सुन लेते है दूर से आबाज से उसे पहचान जाते हैं। सिक्कों व नोटों की भी कृष्णपाल को खासी पहचान है। वह फोन भी सामान्य व्यक्ति की ही तरह चला लेते है। इसके साथ ही वह खुद ही भोजन बनाते है और सामान्य व्यक्ति की भांति ही फोन भी डायल कर लेते है।

श्री बद्री केदार समिति के मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ कहते हैं कि कृष्णपाल बहुत ही स्वाभिमानी है, उन्हें अपने दिव्यांग होने का कोई दुःख नही है लेकिन उनको इस बात की टीस है कि अच्छे खासे लोग तीर्थस्थलों, सड़को पर भीख मांगते फिरते है तथा काम नहीं करना चाहते। कृष्णपाल अपने जीवन संघर्ष बारे में मीडिया तथा सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को बताना चाहते है ताकि उनसे लोग प्रेरणा ले सकें। चार पांच वर्ष पहले मीडिया ने उनके पुरूषार्थ को बहुत सराहा था।

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