हरिद्वार। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक डा. शिव कुमार ने कहाकि दुनियाभर मंे विनाशकारी महामारी का प्रयाय बन चुकें कोरोना के संक्रमण से जहां मानसिक व शारीरिक परेशानिया बढ़ रही है। वहीं सुरक्षित व्यक्ति भी कोरोना संक्रमण के बिना ही इतना भयभीत है कि उसे मनोवैज्ञानिक परामर्श लेने की आवश्यकता महसूस होने लगी है। दैनिक जीवन की जिन समस्याओं को वह सहज ढंग से हैंडल कर लेता था। आज वही रोजमर्रा की चुनौतियां उसे भीमकाय शरीर जैसी सुदृढ एवं विशाल स्वरूप मंे दिखाई पड़ रही हैं। इन समस्याओं के कारण आम आदमी की भावनाएं एवं सामाजिक सामंजस्य के बीच दूरी पैदा हो गई है। कहाकि भय से व्याप्त माहौल दिन प्रतिदिन हमारे चारांे ओर एक अनचाहे खतरे के रूप में बढता ही जा रहा है। कब-कौन-कहां संक्रमित मिल जाए इसका पता नहीं है। कहाकि मनोदशा ऐसी हो गई है कि परिचित व्यक्ति सामने दिखाई देने पर कोरोना का संक्रमण तथा दूसरा व्यक्ति संक्रमित जान पडता है। जिंदगी का आलम यह है कि सामान्य औपचारिता पूर्ण करते हुए भी एक अनचाही घबराहट मन मेब नी रहती है। इन सब स्थितियों मे एकाकी जीवन तथा उसे जीने का तरीका सीखना होगा।
उन्होंने बताया कि ये सभी स्थितियां व्यक्ति के सामने एक नई तरह की चुनौतिया पैदा कर रही है। व्यवहार का विश्लेषण करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि यह भावानात्मक दबाव तथा अनचाहा तनाव कही व्यक्ति को मनोरोगी न बना दे, इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। तनाव तथा दबाव से मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति इस लाकडाउन में किसी अन्य से विमर्श भी नहीं कर सकता क्यांेकि यह स्थिति अधिकांशतया सभी के साथ बनी हुई है। जिसके लिए मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य जागरूकता के लिए भी प्रयास करना जरूरी है। वैश्विक स्तर पर आंकडों को देखने से लगता है कि इस महामारी से अभी तथा वैक्सीन आने से पहले मुक्ति मिलना संभव नहीं है। इस स्थिति में इस महामारी के कारण सामाजिक ढांचे में जो बदलाव लाने की जरूरत है। उसके प्रति साधारण से साधारण व्यक्ति को भी आत्म संयम रखते हुए आत्म निर्भर बनने के लिए तैयार होना पडे़गा।