कनखल हरिद्वार में उत्पात मचा रहे बन्दर
हरिद्वार। राज्य में वर्तमान में 2.25 लाख से अधिक बन्दरों की जनसंख्या है। जिसमें हरिद्वार पंचपुरी कनखल-क्षेत्र में लगभग 2700 बन्दर है। यह आंकड़ा जन्तु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय द्वारा संकलित किया गया है। पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष व कुलसचिव प्रो. दिनेश चन्द्र भट्ट की लैब में शोध छात्र रोवीन सिंह 04 वर्षों से बन्दरों के एग्रेसिव बिहेवयर व इनके द्वारा जन-जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। प्रो. दिनेश भट्ट ने बताया कि वर्तमान में कोविड-19 संक्रमण तेज गति से बढ़ रहा है। इस काल में यह मोनिटरिंग करना आवश्यक होगा कि बंदरों द्वारा संक्रमित घरों से अन्य घरों में आने-जाने व तार पर सुखातेे व लटकाये हुये कपड़ों से छेड़खानी करने से कहीं बंदर संक्रमण फैलाने में सहायक तो नहीं हो रहें। इनकी आबादी पर नियंत्रण व इनकी निगरानी बहुत आवश्यक हो गई है।
अन्तराष्ट्रीय पक्षी व जन्तु वैज्ञानिक प्रो. दिनेश भट्ट के अनुसार विगत एक वर्ष में बन्दरों द्वारा लगभग 85 लोगोें को काटा गया या घायल किया गया है। इनके आतंक को देखते हुये लोग अब पानी की टंकियों और बरामदों को ग्रिल से ढक रहे हैं।
शोध छात्र रोविन व पारूल ने बताया कि बन्दरों के बच्चे स्वभाव से चंचल होते हैं और घरों में रखे हुये गमलांे के फूल खाते-खाते गमलों को गिराकर तोड़-फोड़ करते हैं। अब लोगों ने गमलांे में पौधे रखने ही बन्द कर दिये और ग्रामीणों को खेती करना भारी पड़ रहा है। गौरेया संरक्षण के लिये लगाये गये लकड़ी के घोसलों के अन्दर रखी गई घास को भी बन्दर बाहर निकाल कर फेंक देते हैं और अण्डों को खा जाते हैं।
प्रो. दिनेश चन्द्र भट्ट ने बताया कि राज्य सरकार ने अभी तक इस प्रजाति को वर्मिन (मनुष्य या खेती को नुकसान पहुंचाने वाले जीव) घोषित नहीं किया है। जबकि हिमाचल सरकार द्वारा इसे जुलाई 2019 में ही वर्मिन घोषित किया जा चुका है।
उन्होंने कहाकि चिड़ियापुर रेंज में बन्दरों को बन्ध्याकरण करने का प्रयास भी बंद हो गया है। प्रशिक्षित बन्दर पकड़ने वाला उŸाराखण्ड में कोई नहीं मिला।
बताया कि राज्य सरकार के वन विभाग द्वारा 2016 में चिड़ियापुर रेंज में दो वर्ष में करीब 1700 बन्दरों का बंध्याकरण किया था किन्तु पिछले साल से बंध्याकरण का काम बंद पड़ा है।
इकोलाॅजी का स्थापित नियम है कि किसी भी हैविटेट में जानवर या इन्सान एक निश्चित संख्या में ही ठीक से रह सकते हैं। संख्या में वृद्धि होने पर हैविटेट की धारण-क्षमता खत्म हो जाने से जातियों में संघर्ष व विनाश शुरू हो जाता है। कोविड-19 के काल में मन्दिरों के बंद हो जाने के कारण भोजन की तलाश में शहरी क्षेत्रों में बन्दरों की संख्या अचानक बढ़ गयी और ये ज्यादा आक्रामक हो गये।
बताया कि इनके काटने से रेवीज होने का तो सभी को ज्ञान है किन्तु पिछले वर्ष कर्नाटक में बंदरों द्वारा हरपेस वायरस के कारण लोगों में संक्रमण के केसेस उजागर हुये हैं।
प्रो. दिनेश भट्ट के साथ जन्तु एवं पक्षी विज्ञान पर कार्यरत व संस्कृत विश्वविद्यालय के शिक्षक डाॅ. विनय सेठी ने कहा कि वर्तमान में वन्दरों को मारना धार्मिक व वन्य जीवन प्रोटेशन एक्ट के तहत सम्भव नहीं है किन्तु बन्ध्याकरण का कार्य व ओरल कन्ट्रासेप्टिव दिया जा सकता है।
प्रो. दिनेश भट्ट के अनुसार चूंकि वन्दरों की संख्या में प्रतिवर्ष लगभग 36 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है और बंदर शहरी माहौल में रच-बस गये हंै जो कि मानव-वन्य जीव संघर्ष को ही नहीं बढ़ा रहे अपितु इन बंदरों की क्षेत्रीय बहुलता भविष्य में गम्भीर खतरे व रोग के कारक बन सकते है।