माँ जगदम्बा सरस्वती एक मम्मा के रूप में हमारा रोल मॉडल हैं। देहातीत होकर भी आज भी मम्मा उसी रूप मातेश्वरी हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं। विकट समस्या आने पर अपने पॉवरफुल वायब्रेशन द्वारा हमारे स्व स्थिति को ऊँचा कर देती हैं। ज्ञान के प्रभाव से आज हम कोरोना जैसी समस्याओं के सामने अचल-अडोल बनकर खड़े हैं।
अर्थात जहां दूसरे लोग अवसाद, तनाव अनिद्रा की समस्या से जूझ रहे हैं वहीं पर प्रजापिता ब्रम्हकुमारी के बच्चे किसी भी प्रकार से डिस्टर्ब नही है। इतना ही नही शक्तिहीन बाहरी दुनिया को समस्या से बाहर आने के लिये शक्ति भी प्रदान कर रहे हैं।
यह अकारण नहीं है कि याद की विधि द्वारा ,हमे यह शक्तियां माँ जगदम्बा सरस्वती से उनके पालना के रूप में आज भी प्राप्त हो रही हैं।
1937 से राधे के रूप में एक बच्ची ने अपने योग तपस्या से बाप दादा की विशेष कृपा प्राप्त किया। 24 जून 1964 को देहातीत होकर अव्यक्त स्वरूप में आज भी रूहानी याद की शक्तियों से हमे योग -तपस्या के लिये प्रेरणा दे रही हैं। ब्रम्हकुमारी पालन करने वालों के लिये मातेश्वरी ने ज्ञान-योग-धारणा-सेवा के क्षेत्र में वह प्रतिमान स्थापित किया जो आज हमारा रोल मॉडल बन गया है। यदि हमें कोई उदाहरण देना होता है तब हम मम्मा को याद करते हैं। मम्मा की वाकपटुता और तार्किक क्षमता देखते बनती थी,जिसको देखकर वकील ही नही जज भी लोहा मान लेते थे और दांतों तले अंगुलिया दबा लेते थे।
बुराइयों और आसुरी शक्तियों के विरुद्ध मम्मा एक डिक्टेटर की तरह कार्य करती थी । इनके प्रभाव से बुराई और आसुरी शक्तियां सरेंडर कर देती थी।
कहना न होगा कि मम्मा में परिस्थितियों के बीच तालमेल बैठाने की अदभुत क्षमता थी। अपने विरुद्धों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता के कारण ब्रम्हा बाबा द्वारा ली गई किसी भी परीक्षा को आसानी से पास कर लेती थी। मम्मा का व्यक्तित्व में सम्पूर्ण व्यक्तिगत का स्वरूप था। मम्मा के व्यक्तित्व में वैज्ञानिक, टीचर और कवि का मिश्रण था।
मम्मा जब ज्ञान की बातों का विश्लेषण करती थी तब वैज्ञानिक नजर आती थी। जब ज्ञान को समझाती थी तब टीचर की भूमिका मे रहती थी, लेकिन यदि फिर भी कीसी को समझ मे न आये तब प्रेम से कवि हृदय बनकर सभी बातों का संस्श्लेषण कर वायब्रेशन भी देती थीं। मम्मा को परम् पिता परमात्मा के ज्ञान का जबर्दस्त अधिकार था। वह अपने रॉयल चाल-चलन से अनजान व्यक्तियों पर भी कि अपना छाप छोड़ देती थीं। मम्मा में विशेषता देखने विशेष शक्ति प्राप्त थी। एक बार की घटना में ब्रम्हबाबा ने मम्मा से एक बच्चे के कमियों की लिस्ट बनाने का आदेश दिया। इसके बाद मम्मा में पहले उस बच्चे की सारी विशेषता को सामने रखकर, फिर कहा कि इसमें एक छोटी कमी आलस्य है। अर्थात मम्मा ने अपनी दिव्य दृष्टि से कमियों को भी विशेषता से नीचे रखकर उस कमी के प्रभाव को निष्प्रभावी कर देती थी। पवित्रता सर्वोच्च मूल्य के रूप मम्मा के भीतर एकाकार हो गया था, जिसके प्रभाव से दूसरे व्यक्ति को शांति, शक्ति, प्रेम, ज्ञान, सुख और आनन्द की अनुभूति स्वतः होती थी। 1936 में स्थापित होने वाले प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की प्रथम प्रशासिका मम्मा थी और आगे भी कल्प-कल्पान्तर बनी रहेंगी।
मनोज श्रीवास्तव
प्रभारी विधानसभा
मीडिया सेंटर देहरादून।