चार माह तक मांगलिक कार्यों पर लगेगा ब्रेक, चातुर्मास का होगा आरम्भ
हरिद्वार। आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को आषाढ़ी, देवशयनी, हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी कहा जाता है। इस बार यह एकादशी 1 जुलाई यानी बुधवार को पड़ रही है। देवशयनी एकादशी के साथ भगवान विष्णु चार माह की निद्रां में चले जाएंगे। इसके साथ ही सृष्टि की सत्ता भगवान शिव के हाथों में आ जाएगी और साथ ही चातुर्मास का आरम्भ भी हो जाएगा। देवशयनी एकादशी को निद्रा में लीन होने के बाद भगवान विष्णु चार माह बाद कार्तिक मास में पक्ष में पड़ने वाली देवोत्थान एकादशी
के दिन जागृत होंगे और साथ ही सृष्टि की सत्ता पुनः उनके हाथों में हस्तांतरित हो जाएगी और चातुर्मास का समापन भी हो जाएगा। आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक का चार माह का समय हरिशयन का काल समझा जाता है। वर्षा के इन चार माहों का संयुक्त नाम ही चातुर्मास दिया गया है।
पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री ने बताया कि चातुर्मास का संन्यासियों के लिए बड़ा महत्व है। इस काल में वह जप-तप आदि कार्यों में संलग्न रहते हैं और यात्रा इस दौरान संन्यासियों के लिए निषेध बतायी गयी है।
उन्होंने बताया कि चार मास का समय भगवान विष्णु का शयन काल होता है। पुराणों के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार मास के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं, इसलिए इसे हरिशयनी एकादशी कहा जाता है। बताया कि चातुर्मास के चार महीनों में सभी मांगलिक कार्यों का निषेध शास्त्रों में बताया गया है। इन चार माह में जप-तप, ध्यान आदि का विशेष महत्व है। इन चार माह में संन्यासियों के लिए भ्रमण निषेध बताया गया है।