हरिद्वार। प्रकृति को समझना आम व्यक्ति के लिए मुश्किल है। एक कोरोना वायरस जिसे आंखों से देखा भी नहीं जा सकता। कब मनुष्य के अन्दर पहुंचकर श्वसन तन्त्र को तहस-नहस कर देता है। कोई सोच भी नही सकता है। इसी तरह क्या कोई सोच सकता है कि ‘कठफोड़ा पक्षी की प्रजाति’ हिमालयन वुड पैकर’। अपने होल न्यस्ट (तने पर छेद कर बनाया गया घोंसला) बनाने के क्रम में एक खास अंदाज में संगीतमय ध्वनि के साथ देवदार व बुरांश के तने पर ‘ड्रम बजाने’ जैसी आवाज पैदा करता है। जिससे कोई मादा इसकी लाइफ पार्टनर बनने को तैयार हो जाती है। ड्रमिंग कुछ इस तरह का होता है जैसे राजस्थानी लोक गीतों मंे मटका पर वादन किया जाता है।
इसी विषय पर गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय के जन्तु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष व विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. दिनेश भटट् की शोध टीम का एक शोध पत्र बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के शोध जर्नल में प्रकाशित हुआ है। यह जर्नल और सोसाइटी देश की सबसे पुरानी जर्नल व संस्थाओं में से एक है, जिसका नेतृत्व प्रसिद्ध पक्षीविद् पद्म विभूषण डाॅ. सलीय अली ने की थी।
पक्षी जगत में घोंसला बनाने की अनेक विधियां,कलायें, आर्किटेक्चर विद्यमान है। जहां टेलर बर्ड दो पत्तों को अपनी चोंच को सुई की तरह इस्तेमाल कर किसी मुलायम घास या तिनके का धागा बना कर सिलती है। पीला रंग लिये बया पक्षी बरसात में बच्चों को बचाने के लिये स्थिर व लम्बा न्यस्ट बनाती है तो जालीदार मुनिया मोरपंख व अशोक के पेड़ के अन्दर अदृश्य घोंसला बनाती है। चातक व कोयल तो घोंसला ही नहीं बनाती हैं। दूसरे पक्षियों या कौवे के घोंसले में एक विशेष चालाकी से अंडा दे देती है। इन्हीं सब पक्षियों के गायन व प्रजनन कला पर प्रो. दिनेश भट्ट की लैब ने अनेकों शोध पत्र विश्व स्तरीय यूरोपियन व अमेरिकन जर्नल में प्रकाशित हुये हैं। प्रो. दिनेश भट्ट ने बताया कि वुड़पैकर पक्षी अपने क्षेत्र रक्षण और मादा को आमंत्रण देने के लिये तने पर ड्रमिंग करते हैं। प्रकृति ने इनकी गर्दन की मांसपेशी, चोंच व सिर की हड्डियों को अतिरिक्त मजबूती प्रदान की है और सिर के हड्डियों में सौक एब्जोरबर भी लगा रखे हैं, ताकि तने पर चोंच मारते हुये सिर पर चोट न लग सके। प्रतिमिनट ड्रमिंग की दर व दो ड्रमिंग के बीच के समय की दूरी, ड्रमिंग करने की कुल अवधि इत्यादि पैरामीटर्स विभित्र वुडपैकर्स की जाातियों में भित्र-भित्र होते हैं। कुछ जातियां खोखले पेड़ों के तनों को, गिरे हुये सुखे पेड़ के तनों, टहनियों व कभी कभी चिमनियों व लाइट कवर को भी पैकिंग, ड्रमिंग के लिये उपयोग में लाते हैं। ड्रमिंग को क्वालिटी वाल्यूम, बांरबारता नर पक्षी की हैल्थ, व बल इत्यादि का सूचक भी होता है।
शोध छात्रा पारुल द्वारा दो साल तक हिमालयन वुड पैकर के व्यवहार व प्रजनन विज्ञान पर केदारनाथ के पास तुंगनाथ व चोपता के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में शोध कार्य किया, जहां इस पक्षी का प्रजनन ग्रीष्म मंे प्रारम्भ होकर बरसात में पूर्ण हो जाता है। बच्चे तने पर छेद करके बनाये गये घोंसलों से बाहर निकल आते हैं और बर्फ गिरने से पूर्व उडान भरने लगते हैं। हिमालयी क्षेत्र के किसी भी वुड पैकर पक्षी के प्रजनन व्यवहार पर यह पहला शोध कार्य है। जो प्रो. दिनेश भट्ट केे निर्देशन में पारुल, अमर सिंह व आशीष छात्र द्वारा यह अध्ययन संपन्न किया गया है।