हरिद्वार। जूना अखाड़े की पवित्र छड़ी यात्रा अपने उत्तराखंड और चारो धाम की यात्रा पर अपने दूसरे चरण में गत दिवस बुधवार को देर शाम सोनप्रयाग से केदारनाथ धाम पहुंची। पवित्र छड़ी के केदारनाथ पहुंचने पर धाम के पुजारियों, पण्डांे तथा श्रद्वालु तीर्थ यात्रियों ने पवित्र छड़ी की पूजा अर्चना की। पवित्र छड़ी के प्रमुख श्रीमहंत जूना अखाड़े के अन्र्तराष्ट्रीय सभापति श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज ने बताया गत दिनों केदारनाथ धाम में एक कोरोना पाॅजिटिव मंत्री की उपस्थिति के कारण पवित्र छड़ी के साथ गए साधुओं के जत्थे को मन्दिर में प्रवेश नहीं करने दिया। केवल पुजारियों द्वारा पवित्र छड़ी को बाबा केदारनाथ के दर्शन कराए गए तथा उन्हीं के द्वारा पूजा अर्चना की गयी। कोरोना के कारण केदारनाथ धाम में पवित्र छड़ी तथा साधुओं की जमात का रात्रि विश्राम कार्यक्रम भी रद्द कर दिया गया और पवित्र छड़ी शाम को ही वापस रात्रि विश्राम के सोनप्रयाग पहुंच गयी।
वृहस्पतिवार को पवित्र छड़ी यात्रा पौराणिक त्रिजुगीनारायण मन्दिर पहुंची। जहां प्रमुख पुजारी प.पुरूषोत्तम महाराज, पंडिंत संजय तथा जूना अखाड़े के पुरोहित पंडित सचिन की अगुवाई में स्थानीय नागरिकों ने पुष्प वर्षा कर पवित्र छड़ी की पूजा अर्चना की। पवित्र छड़ी को पावन हवन कुण्ड जहंा हजारों वर्षो से अग्नि अनवरत प्रज्जवलित है, की परिक्रमा करायी गयी। पौराणिक मान्यता है कि त्रिजुगीनारायण मन्दिर में ही भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था तथा स्वयं ब्रहमा जी ने यह विवाह कराया था। जिस हवन कुंड के समझ अग्नि के सात फेरे लिये गये थे, वह हवनकुण्ड आज भी प्रज्जवलित है। इस हवन कुंड के लिए श्रद्वालु लकडियां भी दान करते हंै। ब्रहमा ने जिस कुंड में स्नान किया था वह कुंड भी मन्दिर में स्थित है। जिसमें श्रद्वालु स्नान कर पुण्य अर्जित करते है। मान्यता है कि इस हवन कुड की राख घर में रखने से दाम्पत्य जीवन में कभी संकट नही आता है। श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज ने बताया भगवान शिव तथा पार्वती का विवाह संभवतः 18 हजार 415 वर्ष पूर्व इस त्रिजुगी नारायण मन्दिर में त्रेता युग में हुआ था। तभी से इस मन्दिर में हवन कुंड में अखंड धूनी प्रज्जवलित है। छड़ी यात्रा में शामिल नागा संन्यासी छड़ी महंत शिवदत्त गिरि, महंत पुष्कराज गिरि, महंत अजय पुरी, विशम्भर भारती, महंत महादेवा गिरि, महंत श्रीमहंत भगवत गिरि, कमल भारती, आकाश गिरि, हरिओम गिरि, रूद्रानंद सरस्वती, राधेन्द्र गिरि, परमानंद गिरि, चम्बलपुरी आदि रात्रि विश्राम के लिए गुप्तकाशी पहुंच गए हंै। जहां जिला प्रशासन की ओर से उनकी समस्त व्यवस्थाएं की गयी है।