हरिद्वार। महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान उज्जैन एवं उश्रराखण्ड संस्कृत विवि हरिद्वार के संयुक्त तŸवाधान में शुक्रवार को आयोजित अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर आवधेशानन्द गिरि महाराज ने कहा कि वेद ज्ञान की अनन्तता बुद्धि से परे है, इसलिए वेद अनन्त हैं। परा, अपरा, मध्यमा, ये सब भारत की प्राच्य विद्यायें हैंं, इसी को ब्रह्मसूत्र शांकर भाष्य में आचार्य शंकर ने ब्रह्म की जिज्ञासा कहा है। उन्होंने कहा कि मैं विवेकानन्द की शिष्य परम्परा का अनुयायी हूं, इसीलिए तŸवमसि की धारा का सम्मान करना हमारा धर्म है। वेदों ने पूरे संसार को एक दृष्टि दी है। काल की शुद्धतम् गणना वेदों के माध्यम से ही सम्भव है।
उन्होंने कहा वेद यथार्थ का ज्ञान कराते हुए सत्य को उदघाटित करते हैं, वेदों के सवंद्र्धन के लिए इस प्रकार की गोष्ठियां आवश्यक हैं।
वषिष्ठ अतिथि उश्रराखण्ड के पूर्व मुख्य सचिव डॉ. इन्दु कुमार पाण्डेय ने वेदों को सभी विद्याओं का तŸव बताते हुए कहा कि वेदों के संरक्षण के लिए और अधिक कार्य करने की आवष्यकता है। वेद के अध्ययन एवं अध्यापन द्वारा समाज में आयी सभी विकृतियों को दूर किया जा सकता है। उन्होंने कहा लोक कल्याण के लिए वेदों में अनुसंधान आवश्यक है। मनुष्य के ज्ञात ज्ञान का सबसे प्राचीन एवं विशालतम् भण्डार है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए उश्रराखण्ड संस्कृत विवि के कुलपति प्रो.देवी प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि समस्त शास्त्रों का ज्ञान स्रोत वेद हैं शास्त्रों की परिभाषा वेदों के बिना अधूरी है। वेद मानव एवं समाज के उपकार के लिए हैं। चिंतन ज्ञान के अथाह सागर से चिंतन मनन एवं अनुसंधान से समाज के कल्याण के लिए उपयोग करेन की जरूरत है।
इससे पूर्व संगोष्ठी के प्रारम्भ में विषय उपस्थापन महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रिय वेद विद्या के सचिव प्रो. विरूपाक्ष वी.जड्डीपाल द्वारा किया गया।
गुरूकुल कांगड़ी के कुलपति प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने कहा कि जिन विद्वानों ने आर्ष परम्परा के द्वारा सृष्टि के समय से लेकर अब तक वेदों का संरक्षण किया है वह दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य है। यह भारत देश की विशेषता है कि यहां के वैदिक विद्वानों ने अपने कंठ में इसे सुरक्षित किया, जिस कारण ज्ञान के मामले में हमारा देश धनी है। दिल्ली संस्कृत अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष श्रीकृष्ण सेमवाल ने भी कार्यक्रम को संबोधन किया।
उदघाटन सत्र के अतिरिक्त दो सत्रों में तीन दर्जनों से अधिक शोधपत्र देश विदेश से आये विद्वानों एवं शोधार्थियों ने प्रस्तुत किये। प्रथम सत्र के संयोजक प्रो. कमलाकान्त मिश्र एवं द्वितीय सत्र की अध्यक्षता वेद प्रकाश शृास्त्री ने की। इस अवसर पर प्रो. मोहन चन्द्र बलोदी, प्रो. दिनेश चन्द्र चमोला, डॉ. प्रतिभा शुक्ल, डॉ. कामाख्या, कुलानुशासन डॉश् मनोज किशोर पन्त, डॉ. अरविन्द नारायण मिश्र, डॉ. लक्ष्मीनारायण जोशी, डॉ. रामरतन खण्डेलवाल, उपकुलसचिव दिनेश कुमार, डॉ. बिन्दुमती द्विवेदी, डॉ. प्रकाश चन्द्र पन्त, डॉ. श्वेता अवस्थी, मिनाक्षी, डॉ. विनय सेठी, डॉ. उमेश शुक्ल सहित भारी संख्या में छात्र छात्रायें आदि उपस्थित थे।