प्रतिवर्ष एक करोड़ और 20 समष्टि भण्डारे कुंभ में देने का था प्रस्ताव
हरिद्वार। त्याग की दुकानों पर कैसे पदों की बोली लगती है, इसका उदाहरण अखाड़ों से बेहतर कहीं और मिल नहीं सकता है। सब कुछ त्यागकर भगवद् भजन और समाज सेवा के साथ धर्म की रक्षा का दंभ भरने वाले कैसे लोभ और मोह-माया में फंसे हैं इसका अंदाजा लगाया जा सकता है की किस प्रकार से मण्डलेश्वर, आचार्य मण्डलेश्वर यहां तक की अखाड़ों में बनने वाले सचिव, श्रीमहंत, अष्ट कौशल महंत, कारोबारी, कोठारी, कोतवाल आदि के बनने में भी जमकर धनबल का इस्तेमाल होता है।
सूत्र बताते हैं कि आचार्य महामण्डलेश्वर पद के लिए भी करोड़ों की बोली लगायी जाती है। हाल ही में स्वामी कैलाशांनद को आचार्य मण्डलेश्वर बनाने से पूर्व बोली लगी। सूत्र बताते हैं कि 31 दिसम्बर को प्रयागराज में अखाड़े के एक बड़े श्रीमहंत की बैठक हुई। जिसमें आचार्य स्वामी प्रज्ञानानंद महाराज को पद पर बने रहने के लिए तीन करोड़ देने का प्रस्ताव रखा। साथ ही प्रतिवर्ष एक करोड़ और कुंभ के दौरान 20 समष्टि भण्डारे करने की बात कही गयी। 20 समष्टि भण्डारे का मतलब करीब 3 करोड़ रुपये खर्च करना। प्रस्ताव में कहा गया कि यदि इन सब पर आचार्य स्वामी प्रज्ञानानंद महाराज राजी हैं तो किसी भी सूरत में स्वामी कैलाशानंद का पट्टाभिषेक नहीं होगा। सूत्र बताते है। ेिक श्रीमहंत के इस प्रस्ताव का आचार्य स्वामी प्रज्ञानानंद गिरि महाराज ने यह कहकर ठुकरा दिया की आचार्य का पद गरिमामय पद है। यह बेचे या खरीदे जाने का नहीं। जिस पर अखाड़े के श्रीमहंत मायूस हो गए और उन्होंने इस प्रस्ताव के ठुकराए जाने के बाद स्वामी कैलाशानंद गिरि का पट्टाभिषेक किए जाने को हरी झंडी दी। यानि की स्वामी कैलाशानंद गिरि को आचार्य बनाने के वायदे के बाद भी उनका बनना या न बनना भी असमंजस में था। यदि आचार्य स्वामी प्रज्ञानानंद महाराज तीन करोड़ के साथ एक करोड़ प्रतिवर्ष अखाड़े को देने और 20 समष्टि भण्डारों में करीब तीन करोड़ खर्च करने के प्रस्ताव को मान लेते तो स्वामी कैलाशानंद गिरि का पट्टाभिषेक होना मुश्किल था।