चंद गेंदों पर खिलाडि़यों का हुनर परखना तो कोई सीएयू (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड) से सीखे जो जिला स्तर से चयन के बाद प्रदेश की टीम के चयन के लिए आए अंडर 14 टीमों के करीब 250 बच्चों का मात्र चंद गेंदों पर हुनर परख रही है। अब अगर खिलाडि़यों के चयन का मापदंड यही है तो फिर क्यों ना सीएयू पर बेहतर खिलाडि़यों की अनदेखी के आरोप लगे।
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि जिस सीएयू (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड) के हाथों में बेहतर खिलाडि़यों के चयन का जिम्मा है। वहीं खिलाडि़यों के चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरत रही। ऐसा इसलिए क्योंकि अभी हाल ही में संपन्न हुई अंडर 14 के ट्रायल में देखा गया है कि जो खिलाड़ी जिला स्तर पर लिए गए ट्रायल मैचों के बाद चुन कर गए, उनका आपस में लीग मैच ना कराकर केवल औपचारिकता पूर्ण ट्रायल लिया गया। जिसके ना तो कोई मापदंड है और ना ही कोई वीडियोग्राफी कराई गई। जिससे ये पता चल सके कि कौन खिलाड़ी बेहतर है।
आपको बता दें कि सीएयू हर साल विभिन्न आयु वर्ग की केटेगरी (अंडर 14,16,19,23 व सीनियर) के चयन हेतु जिला स्तरीय लीग या ट्रायल मैच का आयोजन करती है। जिसमें हर जिले से विनिंग टीमों का प्रदेश स्तर के चयन के लिए उनका लीग मैच कराया जाता है। लेकिन अंडर 14 सहित कुछ केटेगरी में लीग ना कराकर सीधे ट्रायल लिए जाते है। जिसमें ना ही मीडिया कवरेज की इजाजत है ना ही कोई वीडियोग्राफी। बस केवल कुछ सेलेक्टर रहते है इसके अलावा एसोशियशन से जुड़े पदाधिकारी जिनकी देखरेख में ये सारी चयन प्रक्रिया निपटा ली जाती है।
हालांकि ये कोई नई बात नहीं इससे पहले भी कई बार सीएयू (क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड) पर मनमाने ढंग से ट्रायल लेने व श्रेष्ठ खिलाडि़यों की अनदेखी करने जैसे आरोप लग चुके है। ऐसे में इस तरह के मनमाने ढंग से लिए जा रहे ट्रायल से ऐसे आरोपों में कहीं ना कहीं कुछ सच्चाई नजर आती दिखती है।
सेलेक्टरों का अपना क्राईट एरिया होता है कि वह बच्चों को कितनी गेंदों पर परखते है। वह (सेलेक्टर) बच्चों के ट्रायल के बाद उनसे पूछते है कि आप संतुष्ट है? लेकिन इसके साथ ही उन्होंने माना कि नेट पर कुछ गेंदों से किसी खिलाड़ी की सही परफार्मेंस का पता नहीं चलता। ट्रायल के दौरान वीडियोग्राफी की बात से भी इनकार किया है।
महिम वर्मा
सचिव (सीएयू)
पारदर्शिता बेहद जरूरी है लेकिन जब इस तरह से बंद कमरे में ट्रायल लिए जाएंगे तो बेहतर प्रतिभा का कैसे आगे आएगी। इससे तो बेहतर होता कि सभी चयनित खिलाडि़यों के बीच मैच कराए जाते। 10-12 गेंदों में क्या हुनर पता चलेगा। अब ऐसे ही मापदंड होंगे तो श्रेष्ठ खिलाडि़यों की अनदेखी जैसे आरोप लगना तो सवभाविक है।
पूर्व खिलाड़ी