हरिद्वार। श्रीपंच दशनाम जूना आनंद अखाड़े के पवित्र प्राचीन छड़ी अपने कुमायंू प्रवास में शुक्रवार की शाम बागेश्वर पहुंची। जहां जूना अखाड़े के श्रीमहंत शंकर गिरि, महंत कमल भारती, तहसीलदार दीपिका, लेखपाल शारदा सिंह व स्थानीय नागरिकों ने छड़ी यात्रा की पुष्पवर्षा कर पूजा अर्चना की। छड़ी को सरयू तथा गोमती के संगम मंे स्नान कराकर पौराणिक शिव मन्दिर बागनाथ ले जाया गया। जहंा वैदिक ब्राहमणों ने पूर्ण विधि विधान से छड़ी के प्रमुख महंत अन्र्तराष्ट्रीय सभापति श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज व नागा सन्यासियों के जत्थे के साथ बागनाथ महादेव की पूजा अर्चना कर अभिषेक किया।
श्रीमहंत प्रेमगिरि महाराज ने बागनाथ महादेव मन्दिर 7वीं शताब्दी से ही अस्तित्व में था। यहा पर भगवान शिव ने ब्याघ्र बाघ के रूप् में निवास करते थे। इसलिए इसे ब्याघे्रश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इन्ही के नाम पर बागेश्वर जनपद का नाम पड़ा। पौराणिक गाथाओं के अनुसार गोमती सरयू नदी के संगम पर मार्कडेय ऋषि ने तपस्या की थी। इस पौराणिक मन्दिर में उमा महेश्वर एकमुखी, त्रिमुखी व चर्तुमुखी शिवलिंग, गणेश, विष्णु, सूर्य आदि की मूर्तियां है जो कि 7वीं से 16वीं शताब्दी के मध्य की है। शनिवार की प्रातः प्राचीन पवित्र छड़ी ने जागेश्वर धाम के लिए प्रस्थान किया। मार्ग मंे पवित्र छड़ी ताकुला स्थित गणानाथ महादेव मन्दिर में दर्शनों के लिए पहुची। जहां अष्टकौशल महंत संध्यागिरि महंत नरेन्द्र गिरि, महंत उमेश पुरी की अगुवाई में स्थानीय ग्रामीणों ने पवित्र छड़ी की पूजा अर्चना की तथा मणानाथ महादेव का अभिषेक किया। पौराणिक गाथाओ के अनुसार गणानाथ महादेव मन्दिर पांचवी शताब्दी का मन्दिर है। जहां सात किलोमीटर की पैदल कठिन चढाई के बाद ही पहंुचा जा सकता है। सघन वनों के बीच इस मन्दिर में भगवान शिव का प्राकृतिक शिवलिंग एक गुफा में स्थित है। गुफा के ठीक उपर एक जलधारा बहकर एक वटवृक्ष पर गिरती है जिसकी जटाओं को शिव की जटाएं कहा जाता है। जटाओं से जल की बूदें शिवलिंग पर निरन्तर टपकती रहती है। जो कि नीचे बने एक जलकुण्ड में एकत्रित होता है। इस जल को वहुत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं हाथ में दीपक लेकर रात्रि जागरण करती है तो उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है। प्राचीन पवित्र छड़ी गणानाथ महादेव के दर्शनों के पश्चात श्रीमहत प्रेमगिरि विशम्भर भारती, शिवदत्त गिरि, पुष्करराज गिरि, महादेवानंद गिरि, पारसपुरी, विनय पुरी, बलदेव भारती, मोहनानंद गिरि, ओमकार पुरी, विमलागिरि, रूद्रानंद सरस्वती, भरवपुरी, रामगिरि, शिवपाल गिरि आदि के नेतृत्व में जागेश्वर धाम के लिए रवाना हुई।