मैदानी क्षेत्रों से प्रेम के चलते राज्य निर्माण की मूल भावना से कर रहे खिलवाड़
मरीज से दुर्व्यवहार चिकित्सक के पेशे के विरूद्ध
देहरादून। राजधानी दून मेडिकल कॉलेज की एक महिला चिकित्सक का अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज के लिए स्थानांतरण का आदेश होना और उसी दिन मुख्यमंत्री स्तर से निरस्त होना प्रदेश में अपने आप में बड़ी घटना है। बड़ी घटना इसलिए की प्रदेश के एक बड़े अधिकारी को अपना तबादला रूकवाकर जहां उन्हें नीचा दिखाना है वहीं अपनी धमक का एहसास कराना है की वे कितनी ताकतवर हैं। यही कारण है कि स्थानांनतरण निरस्त होने के बाद भी महिला चिकित्सक की हनक कायम है। अब उनकी मंशा सरकार और प्रशासन को और झुकने को मजबूर करने वाली दिखायी देती है। यदि ऐसा न होता तो वे स्थानांतरण के आदेश निरस्त होने के बाद भी सिस्टम के ठीक होने से पूर्व नौकरी पर ना लौटने की जिद पर न अड़ी रहतीं। चिकित्सकों की हनक का ऐसा पहला मामला नहीं है। अधिकांश सरकारी अस्पतालों में या तो चिकित्सक मिलते नहीं हैं और जो मिलते भी हैं वे अपनी ड्यूटी को शायद ही ठीक से कर पाते हैं। अधिकाश सरककारी अस्पतालों से अधिक प्राईवेट चिकित्सालयो ंमंे अपनी सेवाएं देते हुए देखे जा सकते हैं। यही कारण है कि आम आदमी सरकारी अस्पतालों में जाने से अधिक प्राईवेट चिकित्सकों से इलाज कराना बेहतर समझते हैं। चाहे व्यक्ति के पास पैसा ना हो, किन्तु उसकी कोशिश रहती है की वह प्राईवेट चिकित्सक से ही अपना इलाज करवाए। अब चिकित्सक के रूतबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्थानांतरण होने के दो घंटे बाद ही उसको मुख्यमंत्री निरस्त करने का आदेश देते हैं। दून मेडिकल कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर स्तर की चिकित्सक-शिक्षक डॉ. निधि उनियाल के संग इस प्रकार के विवादों का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पूर्व सुभारती मेडिकल कॉलेज में डॉ. निधि उनियाल की खासी धमक रही है। यही कारण रहा की डॉ. निधि उनियाल को वहां से भी इस्तीफा देना पड़ा। इतना ही नहीं लोग बताते हैं कि सुभारती में भी मरीजों के तीमारदारों एवं स्टाफ के लोगों के साथ उनका बर्ताव झगलाडू किस्म का था। यहां तक की उनके संबंध प्रबंधन के साथ भी खराब हो गए। इन्हीं कारणों से उनको वहां से इस्तीफा देना पड़ा था। बताया गया कि सुभारती मेडिकल कॉलेज में उनका सैलरी पैकेज दून मेडिकल कॉलेज से ज्यादा था। दून मेडिकल कॉलेज में भी वह दबंग महिला चिकित्सक के रूप में मशहूर हैं। उनके अपने चिकित्सक साथियों के साथ भी कोई बहुत ज्यादा मधुर संबंध नहीं है। दून मेडिकल कॉलेज के प्रशासनिक विभाग के निर्देशों को वह अपनी सुविधानुसार अमल में लाती थी। मेडिकल कॉलेज में न तो वह किसी की बात का सम्मान करती थी और न ही किसी भी दबाव को सहन करती थी। ऐसे में उनके व्यवहार का अंदाजा लगाया जा सकता है। बता दें कि 31 मार्च को सुबह शासन के स्वास्थ्य सचिव आईएएस डॉ. पंकज पांडेय की पत्नी की तबीयत खराब थी, जिनको देखने के लिए कालेज की ओर से डा. निधि उनियाल को उनके निवास पर भेजा गया। डा. निधि उनियाल अपने साथ दो महिला स्टाफ को लेकर स्वास्थ्य सचिव डॉ. पंकज पांडेय के घर उनकी बीमार पत्नी को देखने चली गईं। डॉ. निधि उनियाल स्वास्थ्य सचिव के घर उनकी बीमार पत्नी को देखने के लिए उनके कालिसदास रोड स्थित आवास पहुंची। बताते हैं कि डॉ. निधि उनियाल एवं उनके स्टाफ ने अपना परंपरागत ड्रेसकोड नहीं पहना था इसलिए स्वास्थ्य सचिव की पत्नी कौन स्टाफ है और कौन चिकित्सक इसका अंदाजा नहीं लगा पायीं। चिकित्सक कौन है यह पूछे जाने पर डा. निधि उनियाल का पारा चढ़ गया। बावजूद इसके वे डॉ पंकज पांडेय की बीमार पत्नी का परीक्षण करने लगी। परीक्षण के कोेई इंस्ट्यूमेंट ना होने के सवाल पर डा.ॅ निधि भड़क गयी और गुस्से भरे लहजे में कहाकि वह आपके घर आने के लिए बाध्य नहीं हैं। इसके साथ ही उनका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और उन्होंने मरीज पर ही अपनी भड़ास निकाल दी। जो की चिकित्सक के पेशे के बिल्कुल खिलाफ है। बताते हैं कि घटना की जानकारी डा. पंकज पाण्डेय की पत्नी ने फोन से उन्हें दी। जिसके बाद मामला कालेज प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना तक पहुंचा। डॉ. आशुतोष सयाना के डॉ. निधि उनियाल से घटनाक्रम के बारे में जानकारी ली। किन्तु डॉ निधि उनियाल का वही व्यवहार जारी रहा। जिसके बाद डा. निधि उनियाल के तबादले के आदेश उसी दिन जारी कर दिए गए। इस आदेश से तिलमिलाकर डॉ निधि उनियाल ने प्राचार्य को अपना इस्तीफा लिखकर दे दिया। शाम होते-होते डॉ. निधि के स्थानांतरण के विरोध राजनैतिक दलों का आना और सीएम को उसी दिन स्थानांतरण निरस्त करने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि डा. निधि उनियाल की धमक क्या है। इस मामले में अब उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए जा चुके हैं। वैसे देखा जाए तो तबादले पर इतना घमासान क्यों। घमासान का कारण तबादला पहाड़ी क्षेत्र में किया जाना है। यदि किसी मैदानी इलाके और बड़े शहर में तबादला किया होता तो शायद इतनी हाय तौबा न मचती। चिकित्सकों के पहाड़ न चढ़ने का ही प्रमुख कारण है की प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं। इसके साथ ही ऐसी मानसिकता के चलते जिस अवधारणा को लेकर राज्य का गठन किया गया था वह भी धूल धूसित हो रही हैं। सके साथ ही सरकारी चिकित्सकों के व्यवहार के कारण ही सरकारी अस्पतालों की हालत बदतर है। ऐसे में सरकार को इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है।