हरिद्वार। हमारा जीवन प्रकृति में होने वाले बदलाव के साथ चलता है। जिसे ऋतु चक्र कहते हैं। वातावरण के साथ ही ऋतु में परिवर्तन होते हैं। स्वस्थ रहने के लिए हमें ऋतु परिर्वतन के साथ ही खानपान में बदलाव करना चाहिए। इस समय शिशिर ऋतु है। जिसमें वातावरण का तापमान शरीर के तापमान से कम होने लगता है। इसका असर शरीर में न पड़े इसके लिए आवश्यक है हमारा आहरा-विहार ऐसा हो की शरीर के तापमान को कम न होने दंे।
ऋतु परिवर्तन के अनुसार स्वस्थ रहने के संबंध में ऋषिकुल आयुर्वेदिक कालेज की बाल रोग विशेषज्ञ डा. रीना पाण्डेय के मुताबिक मौसम परिवर्तन के इन दिनों में बच्चों की देखभाल जरूरी है। बताया कि वातावरण में कम होते तापमान का प्रभाव सबसे अधिक शिशु व बच्चों में अधिक पड़ता है। जिस कारण उनमें सर्दी, जुकाम, बुखार, खांसी, निमोनिया जैसे रोगों के होने की संभावना अधिक हो जाती हैै। डा. रीना पाण्डेय ने बताया कि इस समय बच्चों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है। बताया कि इस मौसम में सबसे अधिक जरूरी है कि मां अपने बच्चे को स्तनपान अवश्य कराए। जिससे शिशु और मां दोनों का तापमान संतुलित रहता है। बताया कि शिशु को सर्दी से बचाने के लिए गर्म कपड़े पहनाएं तथा खुले स्थान की अपेक्षा बंद कमरे में शिशु की मालिश करें। बताया कि मालिश के बाद बच्चे को थोड़ी देर धूप सेंकने दें और थोड़ा खेलना भी बच्चे के लिए आवश्यक है। डा. रीना पाण्डेय ने बताया कि यह जरूरी है कि छह मास तक के शिशु को घर का बना ही आहार दिन में तीन बार दें। बताया कि सूजी की खेरी, दलिया, खिचड़ी, सूप व बेसन के चीले तथा फलों के गूदे को अच्छी तरह गूंथकर दिन में एक बार अवश्य देना चाहिए। बताया कि पीने के लिए गर्म पानी देने से बच्चों में कफ की संभावना न के बराबर रहती है। जिस कारण बच्चा खांसी, जुकाम से बचा रहता है।
उन्होंने बताया कि उम्र के हिसाब से बच्चे के पीने के पानी की मात्रा को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। इसी के साथ डायपर का प्रयोग जितना कम हो सके करना चाहिए। जिस कारण पेशाब से होने वाले संक्रमण से भी बच्चे को बचाया जा सकता है। बताया कि बच्चे को चिकित्सक की सलाह के अनुसार उम्र के मुताबिक जायफल, सुहागा, केशर व बादमा का पेस्ट बनाकर शहद के साथ नियमित रूप से देना चाहिए। बताया कि ऐसा कर हम ऋतु परिवर्तन में बच्चे की मुस्कान को दोगुना कर सकते हैं।