हरिद्वार। गुरुकुल विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रो. डॉ. शिव कुमार चौहान ने कहाकि किसी भी काम को लेकर व्मन से सन्तुष्टि होना अत्यंत आवश्यक है, चाहे काम का परिणाम अनुकूल हो अथवा प्रतिकूल। जीवन मंे कुछ न कुछ ऐसी क्रिया सदैव होती रहती है जिसका मन पर प्रभाव पडता है। ऐसी क्रियाओं पर क्षणभर के लिए मन की प्रतिक्रिया भी होती है। लेकिन मन की गति तथा उसकी तीव्रता अधिक होने के कारण ऐसी क्रियायंे बिना किसी परिणाम के मन में स्थापित हो जाती है जिनका मूल्यांकन भी नहीं हो पाता है। कहाकि मन के माध्यम से जीवन में लगातार चलने वाली यह प्रक्रिया अनुकूल तथा प्रतिकूल परिणामों से सुख-दुख, हानि-लाभ, प्रेम-त्याग, सफलता-विफलता आदि से परिचित होता रहता है।
जीवन के इस उतार-चढाव वाली स्थितियों का सामना मन ऊर्जा के माध्यम से करता है। लेकिन जब यह ऊर्जा कम हो जाती है। इसलिए प्रत्येक स्थिति मे मन को प्रसन्नचित बनाये रखना जरूरी होता है। मनोरंजनात्मक क्रियायंे जीवन मंे इसी महत्व के कारण जुडी रहना आवश्यक है।
हरे रंग का हम सभी के जीवन मे एक विशेष महत्व है। सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण से यह हमारी समृद्वि का प्रतीक है। शायद यही कारण है कि अपने चारों ओर हरियाली देख कर मन स्वतः ही प्रसन्न हो जाता है। बाहर का सुहावना मौसम तथा हरियाली का अनुभव आंखों से करने के बाद तंत्रिका तंत्र के माध्यम से जब यह संदेश मन तक पहुंचता है, तब मन में नई ऊर्जा का संचार होता है। जिसके स्पंदन मात्र से मन उत्साहित होकर झूमने लगता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मन की यह अवस्था मानसिक विकृत व्यक्ति के उपचार के लिए सर्वोत्तम अवधि मानी गई है। कहाकि मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि वर्षा ऋतु में वाह्य वातावरण मंे आक्सीजन की अधिकता होने तथा प्राकृतिक परिवर्तन से मन की कल्पना शक्ति विस्तारित हो जाती है। जिससे नीरस मन में उठने वाले नकारात्मक भाव के स्थान पर नवीन तथा उल्लाहसपूर्ण भाव का उदय हो जाता है।
अतः वर्षा ऋतु के आते ही चारांे और वातावरण हरियाली से परिपूर्ण हो जाता है। सुहावना मौसम जीवन के नये लक्ष्यों का निर्धारण करते हुए मंजिल प्राप्ति के लिए आगे बढ़ता है। ऐसे में भय, चिन्ता, कुंठा, अर्न्तद्वन्द, दबाव, तनाव, अवसाद जैसे नकारात्मक विचारों का दमन होता है और मन प्रसन्नचित होकर नई कल्पनाओं से सराबोर हो जाता है। इसलिए हरेला पर्व के अवसर पर अधिक वृक्षारोपण कर वातावरण के सजग प्रहरी बनते हुए मानवीय कल्याण के भाव से प्रेरित होकर उत्सव के साथ इस जागरूकता अभियान से सभी को जुडना चाहिए। कहाकि प्रकृति के इस उत्सव को जन सहभागिता से एक मिशन बनाकर लक्ष्य प्राप्ति के लिए आगे बढ़ंे और देश को आत्म निर्भर बनाने का संकल्प लें।