हरिद्वार। शिव का पंचाक्षर नाम ओम नमः शिवाय सदा सर्वदा मानव कल्याण के के लिए है। ओम नमः शिवाय मंे ओम प्रथम नाम परमात्मा का फिर नमन शिव को करते हुए स्वयं के कल्याण की कामना करना जीवन का उत्तम साधन है। इसी प्रकार सत्यम शिवम सुंदरम का भावार्थ भी यही संदेश देता है कि शिव परम शुभ और पवित्र आत्म तत्व है, और जो सुंदरम है वहीं परम प्रकृति है। शिव को जानना और उन्हीं मंे लीन हो जाना हिन्दुत्व र्है। शिव ही प्रथम तथा अंतिम है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष व्यक्ति के जीवन का आधार स्तम्भ है। इन सब मंे धर्म सर्वोपरि है। जिसकी जड शिव ही है। इसलिए शिव के शरणागत होने पर ही कल्याण संभव है। उक्त बात गुरुकुल कांगड़ी विश्व विद्यालय के प्रो. डात्र शिव कुमार चौहान ने कही।
उन्होंने कहाकि सभी पुराण कहते है कि जो शिव के प्रति शरणागत नहीं होते वही प्राणी दुखः के गर्त मंे डूबता जाता है। जो शिव का अपमान करते हैं प्रकृति भी उन्हंे क्षमा नहीं करती है। शिव का स्वरूप दिव्य गुण सम्पन्न, उज्जवल स्वरूप दिगम्बर है। वेद जिनकी बारह रूद्रों में गणना करते है, पुराण उन्हें शंकर तथा महेश कहते है। तिब्बत मे कैलाश पर्वत शिव का प्रारम्भ निवास स्थान रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार तिब्बत धरती की सबसे प्राचीन भूमि है। जिसके चारांे ओर समुद्र हुआ करता था। समुद्र के हटने से धरती का प्राकटय हुआ। पुराणों का यह प्रमाणिक तथ्य है कि कैलाश पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमण्डल के पार क्रमशः स्वर्ग लोक तथा ब्रहम लोक जहां ब्रहमा जी का स्थान है, स्थित है। शिव भक्तों मे ब्रहमा, विष्षु और सभी देवी-देवताओं सहित राम तथा कृष्ण भी शिव भक्त है।
भारत विकास पंचपुरी शाखा के आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहाकि शिव भक्ति में शिव पूजन का विधि विधान से पूजन-अर्चन करना चाहिए। शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढाकर तथा समीप बैठकर मंत्र जाप करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है। शैव परम्परा के अन्तर्गत ऋग्वेद में वृषभदेव का वर्णन मिलता है, जो जैनियों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ कहलाते हैं। माना जाता है कि शिव के बाद मूल रूप उन्हीं से एक ऐसी परम्परा की शुरुआत हुई जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगम्बर और सूफी सम्प्रदाय में विभक्त हो गई। फिर भी यह शोध का विषय है। भारत की रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है। श्रावण मास शिव का अति प्रिय मास है। इस मास मंे पूरी सृष्टि शिवमय रहती है।