रुड़की/संवाददाता
अगले वर्ष उत्तराखंड राज्य की राजनीतिक सरगर्मियां तेज होने जा रही है, क्योंकि राज्य सरकार अपने अंतिम चुनावी वर्ष में प्रवेश करेगी। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी हरिद्वार लोकसभा में 14 विधानसभाओं में से 11 पर 2017 में जीत हासिल कर चुकी है और कांग्रेस मात्र तीन विधानसभा क्षेत्रों में सिमट कर रह गई थी।
आगामी चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए सूत्रों के हवाले से भाजपा का सभी विधायकों को टिकट दिया जाना लगभग तय माना जा रहा है। शेष 3 सीटों पर भाजपा को कोई खास उम्मीद नहीं है। इसलिए ज्यादा राजनीतिक सरगर्मियां नहीं है।
परंतु राज्य का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस संभावित रूप से नई रणनीति के साथ उतरने की संभावना है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि प्रचलित चेहरों पर दांव लगाकर हारने के बजाय नए चेहरों पर दांव खेला जाए। इसलिए गोपनीय रूप से प्रत्येक विधानसभा की नए सिरे से समीकरण एवं संभावित प्रत्याशियों की क्षमता पर बारीकी से विचार चल रहा है। गोपनीय रूप से चल रहा आकलन उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस के नेताओं की जानकारी में नहीं है।
विगत चुनाव में कांग्रेस ने जिन 11 विधानसभा क्षेत्रों पर हार का सामना किया, वहां पर थके-थकाए चेहरों को सामने लाने से जनता में उनके प्रति विश्वास अथवा समर्थन दिखाई नहीं दिया। जिस कारण कांग्रेस प्रत्याशियों को जहां एक और हार का सामना करना पड़ा। वही उन प्रत्याशियों ने चुनाव के बाद जनता और कार्यकर्ताओं के बीच में अपनी सक्रियता शून्य कर दी। कांग्रेस के रणनीतिकार इस गंभीर लापरवाही को दोहराने में संकोच कर रहे हैं और प्रत्येक विधानसभा क्षेत्रों पर नए सक्रिय युवा कार्यकर्ताओं पर अधिक विश्वास किये जाने की संभावना है।
कांग्रेस के रणनीतिकारों ने उत्तराखंड कांग्रेस के नेताओं को इसको अपने सर्वे से दूर रखा है। परंतु उनका मानना है कि जैसे ही मजबूत प्रत्याशियों का पैनल तैयार होगा, तब वह राज्य के नेताओं से सहमति बनाकर भाजपा को मजबूत चुनौती देने की रणनीति को तैयार कर रहे हैं। जिससे चुनाव के दौरान आपसी सिर-फुटव्वल से बचा जा सके।
यदि कांग्रेस की यह रणनीति उत्तराखण्ड में कामयाब रहे, तो कांग्रेस निश्चित रूप से उत्तराखंड की सत्ता को पाने में सफल रहेगी। यदि आपसी गुटबाजी को किनारे ना किया गया तो भाजपा सरकार को हटा पाना मुश्किल होगा।