रुड़की/संवाददाता
हरिद्वार जिले में अनुमति के नाम पर बड़ी मात्रा में हरे-भरे पेड़ काट दिये गए। शासनादेश के अनुसार वन तस्कर एवं उद्यान विभाग पुरातन प्राचीन परंपरा को निभाते देखे गये, कि जब-जब वन तस्करों द्वारा हरे-भरे पेडों पर आरियां चलाई गई, तब-तब उद्यान विभाग एवं वन विभाग ने शासनादेशों का हवाला देते हुए ढाल बनकर वन तस्करों के लिये पेडों के कटान से चिरान तक पहुंचने का सफर आसान कर दिया। शासनादेशों के चलते वन तस्करों द्वारा जिस प्रकार से अंतिम समय सीमा आते ही पेडों के कटान पर जोर-शोर से आरियों एवं कुल्हड़ों से वार किया गया, उसको देखकर लगता है कि आने वाला समय शायद ओर गंभीर होगा।
इस गंभीरता को दृष्टिगत रखते हुए मार्च 1974 में भी चिपको आंदोलन की जननी श्रीमती गौरा देवी ने वन तस्करों के खिलाफ बड़ा अभियान छेड़ा था, यह अभियान दुनियाभर में अलग पहचान के साथ जाना गया, लेकिन अफसोस कि बात है कि जिस चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड प्रदेश से हुई, आज उसी प्रदेश के वन निगम, वन विभाग व उद्यान विभाग अधिकारियों द्वारा शासनादेशों का हवाला देते हुए वन तस्करों के साथ मिलकर चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी के त्याग, बलिदान ओर अभियान को भूलकर केवल ओर केवल मोलभाव तक सीमित कर दिया। जिसके उदाहरण पूर्ण प्रदेश में ज्ञातव्य है, परंतु हाल-फिलहाल रुड़की तहसील के प्रक्षेत्रों, जिनमें बाजुहेड़ी, मुंडलाना, टाण्डा बनहेड़ा, मंगलौर, बेलड़ा, कलियर, दौलतपुर, गढ़, मीरपुर, बेड़पुर, इमलीखेड़ा आदि क्षेत्रों में बहुआयामी नजर आया। यहां प्रशासन की कार्यवाही शून्य से ऊपर उठ नही पा रही है और चिपको आंदोलन के बलिदान को अंतिम श्रद्धांजलि देती नजर आ रही।