हरिद्वार। हरिद्वार तीर्थनगरी है। सात मोक्षदायिनी नगरियों में हरिद्वार भी मायापुरी के नाम से शुमार है। यहां आए दिन लक्खी मेलों का आयोजन होता रहता है। लाखों की संख्या में प्रत्योग आयोजन व पर्व में लोग स्नान करने के लिए आते हैं। वीकेंड व छृट्टियों के दिनों में तीथनगरी लोगों से खचाखच भरी रहती है। ऐसे में यहां सभी सुविधाएं होना जरूरी है। किन्तु पौराणिक महत्व की इस नगरी में सुविधाओं के नाम पर देखा जाए तो शून्य है। यहां तीर्थयात्रियों को हरिद्वार में प्रशासन और नगर निगम की तरफ से मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल रही हैं। पूर्व में हरिद्वार में जगह-जगह नल और प्यऊ हुआ करते थे। आज स्थित यह है कि मात्र एक प्याऊ बचा है और नलों में पानी आना तो दूर की कोड़ी जैसा हो गया है। शौचालयों की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है। कांवड़ मेले में बाद शहर में उठने वाली दुर्गध से लोग भलीभांति परिििचत हैं। रेलवे और बस स्टैण्ड पर जो पाने के पानी के लिए नल लगाए गए हैं वे या टूटे हुए हैं या वहां फैली गंदगी के कारण कोई जाना भी पसंद नहीं करता। किसी भी स्नान पर्व या वीकेंड के दिनों में श्रद्धालुओं की संख्या में जरा सा इजाफा होने पर शहर जाम के कारण कैद हो जाता है। जिस कारण स्थानीय लोगों को सबसे अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। सड़कों की स्थिति विगत डेढ़ दशक से इतनी खराब है थ्क यह पता ही नहीं चलता की सड़कों में गड्ढ़े है। या फिर गड्ढ़ों में सड़क। सबसे बुरा हाल रामजार्ग का है। कुंभ पर्व नजदीक है। दिसम्बर 2020 में कुभ आरम्भ हो जाएगा। ऐसे मंे मूलभूत सुविधाओं के अभाव में कुंभ कैसे सम्पन्न होगा यह राम ही जाने। वहीं हरिद्वार का संत समाज केवल कुंभ कार्य शीघ्र पूर्ण किए जाने के संबंध में केवल बयानबाजी तक सिमटा हुआ है। उसकी मंशा कुंभी की आड़ मंे अपना उल्लू सीधा करने वाली है।