निर्वाणी अखाड़े के श्रीमहंत रविन्द्रपुरी को अध्यक्ष बनाने की मुहिम में सक्रिय हुआ एक खेमा
हरिद्वार। स्वंय को समाज को मार्गदर्शक और धर्म का ठेकेदार कहने वाला संत समाज भी राजनीति से अछूता नहीं है। या यूं कहें की वर्तमान में ध्यान छोड़कर राजनीति करना ही इनकी नीयति बनकर रह गयी है। वर्तमान के हालातों में अखाड़ा परिषद के महामत्री पद से श्रीमहंत हरिगिरि महाराज से छुट्टी किए जाने की तैयारियां चल रही है। जिसके चलते आवाह्न को छोड़कर शेष सभी अखाड़े हरिगिरि के विरोध में दिखायी दें रहे हैं। इसका मुख्य कारण अग्नि अखाड़े में अत्यधिक हस्तक्षेप, किन्नर अखाड़े के समर्थन में खड़ा होना और अखाड़ा परिषद अध्यक्ष से मनमुटाव बताए जा रहे हैं।
बता दें कि दों दिन पूर्व बैरागी सम्प्रदाय के श्रीमहंत राजेन्द्र ने अपने बयान में श्रीमहंत हरिगिरि महाराज को परम्पराओं से छेडछाड़ करने पर हरिद्वार और जूना अखाड़ा तक छोड़ने की चेतावनी दी थी। सूत्र बताते हैं कि इस चेतावनी के पीछे श्री महंत हरिगिरि महाराज के एक विरोधी गुट का हाथ बताया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि बैरागी साधुओं की पीठ पर को ऐसा करने के लिए अखाड़ा परिषद के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने हाथ रखा हुआ है। जिस कारण श्रीमहंत हरिगिरि महाराज को जूना अखाड़ा और हरिद्वार तक छोड़ने की चेतावनी दी गयी। वहीं किन्नर अखाड़े को हर प्रकार से जूना अखाड़ा का समर्थन करने पर भी अखाड़ा परिषद के कुछ पदाधिकारी नाराज नजर आए। जिस कारण श्रीमहंत हरिगिरि को अखाड़ा परिषद से महामंत्री पद तक छोड़ने की चेतावनी देनी पड़ी। उन्होंने कहा था कि वे पद त्याग सकते हैं किन्तु अपने वचन से पीछे नहीं हट सकते। इस बात को लेकर भी उनका अंदरखाने विरोध जारी है। वहीं अग्नि अखाड़े में स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी के आचार्य बनने के बाद से अत्यधिक हस्तक्षेप से भी अग्नि अखाड़े के कई संत नाराज हैं। अग्नि अखाड़े के सम्पत्ति को कुछ लोगों नाम लिखने से भी अग्नि अखाड़े के संतों मे ंखासी नाराजगी हैं। सूत्र बताते हैं ेिक कुछ सम्पत्तियों को दूसरे संत के नाम लिखने पर भी अग्नि अखाड़े में विवाद हुआ। बताया जाता है कि कुछ विवादित सम्पत्तियों को भी दूसरे को सौंपने से विवाद की स्थिति संतों के बीच उत्पन्न हुई। जिस कारण से अग्नि अखाड़े के एक वरिष्ठ संत को अपने कार्यों के कारण आघात पहुंचा और उन्हें ह्दयघात के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इन सब कारणों से हरिगिरि महाराज के विरोध में एक बड़ा खेमा तैयार हो चुका है। जो कभी भी हरिगिरि महाराज को अखाड़ा परिषद से बाहर का रास्ता दिखा सकता है।
वहीं दूसरी ओर संतों के एक खेमे में श्री पंचायती महानिर्वाण्ी अखाड़े के श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज को अध्यक्ष बनाए जाने की कोशिशें भी तेज हो गयी है। निरंजनी अखाड़े में आचार्य पद पर हुए पट्टाभिषेक के बाद से नाराज कुछ संत श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज को अध्यक्ष बनाने की अंदरखाने चल रही मुहिम में जुट गए हैं। वर्तमान में संतों की राजनीति जिस दशा में जाती दिखायी दे रही है उसको देखते हुए कोरोना के बाद कुभ पर संतों की राजनीति की भी कुटिल छाया पड़ सकती है।