हरिद्वार। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष व श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के श्रीमहंत रविन्द्र पुरी महाराज ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों को पत्र प्रेषित कर समलैंगिकता संबंधी याचिका को स्वीकार करने के बाद इस पर गंभीरता से विचार करने का अनुग्रह किया है।
श्रीमहंत रविन्द्र पुरी महाराज ने कहा कि विवाह एक पुरातन संस्था है। सभी धर्मों के समाजों ने अपनी मान्यताओं के आधार पर विवाह परिवार संस्था की स्थापना की, इसके लिए नियम व मर्यादाएं बनायीं और संगठित, संस्कारित समाज के लिए इस विवाह व परिवार संस्था को पोषित किया है। उन्होंने कहाकि दीर्घकाल से चली आ रही विवाह-परिवार संस्था की अवधारणा, स्वरूप, कर्तव्य, विधि निषेध आदि सुनिश्चित होकर स्थापित हो गए हैं। यह सब भारतीय समाज के अवचेतन मन में स्थापित होकर, डीएनए का भाग ही हो गए हैं।
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष ने कहाकि उचित यह होगा की विवाह संस्था में संशोधन का काम लोकसभा, विधानसभाओं पर छोड़ दिया जाए और यदि सर्वोच्च न्यायालय इस विषय पर विचार करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हो तो भी इसमें जल्दबाजी ना की जाए,क्योंकि इस तरह के मामलों में जल्दबाजी के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय को इस विषय पर विचार करते हुए भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले धर्म गुरुओं, शास्त्रीय विद्वानों व अन्य वर्गों को भी अवश्य सुनना चाहिए। श्रीमहंत रविन्द्र पुरी महाराज ने कहा कि इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय को कुछ समितियां बनाकर देशभर में इस विषय पर समाज की राय जानना जरूरी है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से अपील करते हुए कहा कि इस विषय पर उन्हें भी अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाए और तारीख तय की जाए।