बीपीएल कार्ड का शुरू से ही नहीं हुआ निष्पक्षता से सत्यापन
हरिद्वार। सरकार द्वारा गरीबों को मिलने वाले फ्री के राशन का कई अपात्र भी लाभ उठा रहे हैं। जबकि पात्र लोग अभी भी बीपीएल कार्ड से महरूम हैं। इस व्यवस्था के लिए वार्ड पार्षद से लेकर तहसीलदार तक सभी कहीं ना कहीं दोषी हैं। वर्षों पहले बिना जांचे परखे रेवडि़यों की भांति बांटे गए बीपीएल कार्ड अब सरकार के गले की हड्डी बन गए, बावजूद इसके राज्य सरकार ने गंभीरता से इसकी जांच नहीं कराई।
कुछ माह पूर्व राज्य सरकार की खाद्य मंत्री रेखा आर्य ने ये घोषणा की थी कि जिस किसी अपात्र के पास बीपीएल कार्ड है वह सरेंडर कर दे अथवा उसका नाम सार्वजनिक किया जाएगा। फिर कुछ समय बाद उसी आदेश को वापिस लेते एक निश्चित समय सीमा के साथ नया आदेश दिया कि इस अवधि तक अपने कार्ड सरेंडर कर दिया जाए। हालांकि प्रदेश मेे कई लोगों द्वारा फर्जी तरीके से बनाए गए बीपीएल कार्ड सरेंडर हुए, किन्तु उनकी संख्या बेहद कम है। जबकि अभी भी कई फर्जी कार्ड होल्डर बेधड़क फ्री राशन का लुफ्त उठा रहे हैं। जिसकी जांच तहसील स्तर पर ना हुई और न ही हो रही है।
केंद्र सरकार की योजना को अधिकारी लगा रहे पलीता
करोना काल में केंद्र की मोदी सरकार ने बीपीएल कार्ड पर गरीबों को मुफ्त अनाज देने की जो योजना चलाई थी। उसे आगे बढ़ाते हुए वर्तमान तक फ्री अनाज वितरित किया जा रहा है। उसका खमियाजा एपीएल कार्ड धारकों को उठाना पड़ रहा है, क्योंकि एक सीमित मात्रा में उपलब्ध राशन को या तो गरीबों मेे मुफ्त बांट से या फिर सामान्य कीमत पर एक निश्चित यूनिट के तहत सभी बीपीएल व एपीएल (पीला) कार्ड दोनों को दिया जाए। किन्तु लंबे समय से एपीएल (पीला) पर गेंहू नहीं दिया जा रहा। क्योंकि सारा गेंहू तो फ्री में बीपीएल कार्ड के तहत दिया जा रहा है।
कब होगी जांच, कब नपेंगे दोषी
प्रदेश में लंबे समय से फर्जी तरीके से बीपीएल कार्ड बनाने का खेल चल रहा था। बताया जा रहा है कि यह पूरा खेल शहर के ही एक विधायक की शह पर हुआ है। इसी जनप्रतिनिधि के चहेते पार्षदों ने अपने नेताजी के वोट बैंक पक्का करने के लिए कई वर्षों तक फर्जी तरीके से जमकर बीपीएल कार्ड बनवाए। यदि निष्पक्षता से और ढंग से इसकी जांच की जाए तो जिस समय ये बीपीएल कार्ड बनाए गए उस समय के सम्बन्धित अधिकारी कर्मचारी जरूर नापेंगे और तब उनसे व अपात्रों से इसकी पाई-पाई की वसूली की जाए।