हरिद्वार। मंगलवार को कुशोत्पटनी अमावास्या है। इस दिन कुशा को लाकर वर्ष भर उसका दैनिक पूजा- पाठ व पितृ कर्म में उपयोग किया जाता है। कुशा के बिना सनातन धर्म में धार्मिक व पितृ कार्य पूर्ण नहीं होते। पूरे वर्ष भर पितृ कार्यों में कुशा की आवश्यकता होती है। बिना कुशा के तर्पण, श्राद्ध, दैनिक श्राद्ध इत्यादि कुछ भी नहीं होता है। नित्य ही प्रत्येक तीर्थ में कुशा की जरूरत होती है। कुशा तो पहले पूरे हरिद्वार में बहुत होती थी परन्तु अब केवल चिल्ला के जंगल में गंगा नदी के तट पर ही मिलती है। ज्यातिषाचार्य पंत्र प्रतीक मिश्रपुरी के ने बताया कि कुशा को जड़ सहित लेकर आने का विधान है। भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अमवस्या के दिन कुशा लायी जाती है। श्री मिश्रपुरी के मुताबिक कुशा को उखाड़ने के समय हूं फट स्वाहा, मंत्र को पढ़ते हुए बोलना आवश्यक होता है। बिना मंत्रोच्चारण के उखाड़ी गयी कुशा सही नहीं मानी जाती। उन्होंने बताया कि कुशा को उखाड़ कर लेना होता है। कई स्थानों पर कहा गया है कि कुशा को उखाड़ने से एक दिन पूर्व निमंत्रण देकर आना चाहिए तथा अगले दिन कुशा लाने से पुण्य की प्राप्ति होती है। ये पूरे वर्ष भर निवास करती है। इस दिन यदि कुशा किसी ब्रह्मण के हाथांे से लेकर घर लेकर आई जाए तो उस घर में वास्तु दोष, गुरु दोष, चांडाल योग इत्यादि समाप्त हो जाते हंै। पितृ दोष भी पूरे वर्ष नहीं सताता। इस वर्ष कुशा गृहणी अमावस्या मंगलवार 18 अगस्त को है। इस दिन पूर्व की ओर मुख करके मंत्र जाप करते हुए कुशा को उखड़कर घर लाना चाहिए। उन्होंने बताया कि कुशा ऊपर से हरी होनी चाहिए।