हरिद्वार। भगवान भास्कर के दक्षिण से उत्तर में प्रवेश करने का पर्व मकर संक्रांति इस बार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। मकर संक्रांति का सनातन संस्कृति व धर्म में विशेष महत्व बताया गया है। माघ महीने में होने वाले इस त्योहार पर स्नान, दान, व्रत, पूजा-पाठ आदि का विशेष महत्व होता है। मकर संक्रांति को देशभर में अलग-अलग नामों के साथ मनाया जाता है। उत्तराखंड में जहां उत्तरायणी त्योहार के रूप में मनाया जाता है तो वहीं उत्तर प्रदेश में खिचड़ी, दक्षिण में मकर संक्रांति को पोंगल के रूप में मनाया जाता है।
सनातन धर्म में सभी त्योहार चन्द्रमा की गणना व तिथियों के अनुसार मनाये जाते हैं, वहीं मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना के आधार पर मनाया जाता है। सूर्य जिस दिन धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करते हैं उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है। हर वर्ष मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी को मनाया जाता है। लेकिन इस बार हिंदू पंचांग के अनुसार, सूर्य 14 जनवरी की रात 8 बजकर 45 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेगा। उदया तिथि 15 जनवरी को प्राप्त हो रही है। ऐसे में मकर संक्रांति इस साल 15 जनवरी को मनाई जाएगी।
मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों आदि में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस बार मकर संक्रांति पर स्नान का पुण्य काल 15 जनवरी को सुबह 4 बजकर 17 मिनट से शाम 5 बजकर 55 मिनट तक है। जबकि महा पुण्य काल 15 जनवरी को सुबह 7 बजकर 17 मिनट से सुबह 9 बजकर 04 मिनट तक रहेगा। पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक इस दिन भगवान सूर्य दक्षिण से उत्तर दिशा में प्रवेश करते हैं। इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत संस्कार जैसे मांगलिक कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति के दिन खासकर स्नान, दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन नदियों में स्नान करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है। स्नान के पश्चात तिल, गर्म वस्त्र, मिष्ठान, फल आदि दान करने का विशेष महत्व बताया गया है।
कहा जाता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने बाणों की शैय्या पर लेटकर उत्तरायण का इंतजार किया था और मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होने के बाद ही अपने प्राणों को त्यागा था। इस दिन गंगा सागर में दर्शन व स्नान करने का भी महत्व बताया गया है। मकर संक्रांति के साथ ही दिन के समय में वृद्धि व रात का समय कम होने लगता है।