हरिद्वार। कुंभ वर्ष आरम्भ हो चुका है। बावजूद इसके फिलहाल कुंभ पर अनिश्चितता के बादल छाए हुए हैं। अभी तक कुंभ कैसा होगा इसका स्वरूप भी सरकार तय नहीं कर पायी है। कागजों में कुंभ की तैयारियों जोरों पर हैं, किन्तु धरातल पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। वह संत समाज भी कुंभ को लेकर अनिश्चितता में हैं।
कुंभ को लेकर सबसे अधिक समस्या मण्डलेश्वरों के सामने आ खड़ी हुई है। जिस कारण अधिकांश मण्डलेश्वरों को मधुमेह ने बूरी तरह से जकड़ लिया है। उसका प्रमुख कारण है धन। सभी जानते हैं कि कोरोनो के कारण सभी व्यवसाय बूरी तरह से प्रभावित हुए हैं। उसमें कथा वाचक भी शामिल हैं। अधिकांश मण्डलेश्वर कथा, प्रवचन के माध्यम से ही धनोपार्जन करते हैं। जबकि एक वर्ष से यह सब गतिविधियां समाप्त पड़ी हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक मण्डलेश्वर ने बताया कि कुंभ ने उनकी दुर्गति कर दी है। उनका कहना था कि कुंभ में मण्डलेश्वर को एक समष्टि भण्डारा करना अनिवार्य होता है। कुछ दो या तीन भी करते हैं, किन्तु वर्तमान में कोरोना के कारण कहीं से भी उन्हें धनोपार्जन नहीं हो रहा है। एक समष्टि भण्डारे के लिए अखाड़ा 12 से 15 लाख रुपये लेता है। इसके साथ अन्य खर्च अलग। ऐसे में कोरोना के कारण बर्वाद हो चुके लोग कैसे धन दें। बताया कि यदि समष्टि भण्डारा न दिया जाए जो अखाड़ा समाज में उनकी दुर्गति कर देता है। जबकि सत्यता यह है मण्डलेश्वर कथा, प्रवचन आदि में गला फाड़कर धन लाते हैं और मलायी अखाड़ा चाट जाता है। इस चिंता के कारण उन्हें मधुमेह की समस्या अधिक बढ़ गयी है। ऐसा किसी एक मण्डलेश्वर का हाल नहीं है। अधिकांश मण्डलेश्वर इसी समस्या से चिंता के कारण ग्रसित हो चुके हैं।