हरिद्वार। उत्तराखंड की पावन भूमि की महिमा अनंत है। प्राचीन काल से लोग यहां धर्म और अध्यात्म के लिए आते रहे हैं। हरिद्वार भगवान विष्णु और शंकर दोनों की प्राप्ति का स्थान है। पतित पावनी गंगा इसकी साक्षी व मोक्षदायिनी भी है। उक्त बात राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दिव्य प्रेम सेवा मिशन के रजत जयंती समारोह के समापन अवसर पर कही। दिव्य प्रेम सेवा मिशन के रजत जयंती के समापन समारोह में शामिल हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि दिव्य प्रेम सेवा मिशन के साथ 25 साल की उनकी यादें ताजा हो रही हैं, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने कहा कि आशीष गौतम में सेवा की जो संकल्पना है, वह इस रूप में साकार होगी। उन्होंने कहा कि आशीष गौतम ने प्रयागराज से 25 साल पहले हरिद्वार आकर सेवा की नींव रखी। उन्होंने सेवा की एक मिसाल कायम की है। दिव्य प्रेम सेवा मिशन की सेवाएं अनुकरणीय हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि उनको आकर प्रसन्नता हो रही है। सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है। सेवा के इस बीज का रोपण करने में मेरी छोटी सी भूमिका रही है, वह आज वट वृक्ष बन चुका है। राष्ट्रपति ने कहा कि राज्यसभा सांसद बनने के बाद मेरी पहली यात्रा हरिद्वार की हुई। राष्ट्रपति बना तो उत्तराखंड आने पर सबसे पहली यात्रा हरिद्वार में मिशन की इस भूमि पर हुई। उन्होंने कहाकि अध्यात्म का मूल तत्व है लोक कल्याण और सेवा। अध्यात्म के मार्ग पर चलते हुए दिव्य प्रेम सेवा मिशन की स्थापना की गयी। जो निरंतर कल्याण के मार्ग पर अग्रसर है।
इससे पूर्व मिशन पहंुंचने पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद व श्रीमती सविता कोविंद का स्वागत किया गया। बता दें कि राष्ट्रपति का शनिवार को देवभूमि में आगमन हो चुका था। आज सुबह वह हरिद्वार पहुंचे तथा उन्होंने दिव्य प्रेम सेवा मिशन के रजत जयंती समारोह में शिरकत की।
विदित हो कि दिव्य प्रेम सेवा मिशन का विगत एक साल से रजत जयंती समारोह मनाया जा रहा है, जिसके तहत दिव्य प्रेम सेवा मिशन में सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग पूजन का आयोजन किया जा रहा है। इस अवसर पर राज्यपाल ले. जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, स्वामी रामदेव, दिव्य प्रेम सेवा मिशन के आशीष, संजय चतुर्वेदी व अन्य गणमान्य लोग मौजूद रहे।