मेयर सीट जीतने के बाद भी क्या भाजपा के लिए बजी खतरे की घंटी;जानिए क्यों

political Rishikesh

*भाजपा रणनीतिकारों के लिए चिंतनीय विषय।

*क्षेत्रवाद की राजनीति का चुनावों में दिखा असर।

दैनिक बद्रीविशाल

ऋषिकेश। नगर निकाय चुनावों में ऋषिकेश मेयर सीट पर आए परिणाम बहुत कुछ इशारा कर गए। बेशक इस सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज की, लेकिन जिस तरह से 58 हजार की वोटिंग में भाजपा ने इतने कम मार्जिन (करीब 3 हजार) से जीत हासिल की, इसने आगामी चुनावों के लिए यहां से भाजपा के लिए खतरे की घंटी भी बजा दी। अब यहां से भाजपा को बहुत कुछ समझना होगा,वरना आने वाले चुनाव में भाजपा को नुक्सान भी उठाना पड़ सकता है।

नगर निगम चुनावों में मेयर सीट पर शुरू से भाजपा का मुकाबला कांग्रेस व निर्दलीय के बीच माना जा रहा था, लेकिन भाजपा ने निर्दलीय उम्मीदवार दिनेश चंद मास्टर की चुनौती को हल्के में लिया और वह यही मानकर चल रही थी कि उसका सीधा मुकाबला कांग्रेस से है और वह अपने विकासवादी एजेंडे के बल पर आसानी से परास्त कर देगी। वहीं दूसरी ओर कुल्हाड़ी के निशान पर चुनाव लड़ रहे निर्दलीय दिनेश चंद मास्टर लगातार भाजपा प्रत्याशी को ही टारगेट करते हुए अपना चुनावी कैंपेन छेड़े हुए थे। अब ये उनका चुनावी प्रबंधन कहो या एजेंडा जो उन्होंने या उनकी टीम ने भाजपा प्रत्याशी को शिकस्त देने के लिए सेट किया था, उस पर ही केंद्रित होकर उन्होंने पूरा चुनाव लड़ा। हालांकि उन्होंने भ्रष्टाचार कैसे मुद्दों को छेड़ा जरूर लेकिन उनका सारा फोकस भाजपा प्रत्याशी को बाहरी बताने पर केन्द्रित रहा। मास्टर के इसी मास्टर स्ट्रोक को भाजपा हल्के में लेती रही। उसे यह लगा कि वह यह चुनाव बड़े अंतर से जीतेगी लेकिन जीत का अंतर बताता है कि मुकाबला कितना कड़ा था।

दरअसल दिनेश चंद “मास्टर” शुरू से ही मुद्दों की बजाय भाजपा के शंभू पासवान को बाहरी और खुद को पहाड़ का बेटा बतलाते रहे। उन्होंने इसे सीधे सीधे (गढ़वाल) क्षेत्र की अस्मिताता से जोड़ दिया। जिसका मतलब ऋषिकेश निगम क्षेत्र में बसे हजारों गढ़वाली मतदाताओं की सहानुभूति बटोरना और काफी हद वह इसमें सफल भी हुए। जबकि मास्टर के इसी मास्टर स्ट्रोक को भाजपा समझने में भूल करती रही। उसे (भाजपा) भ्रम रहा कि भाजपा का कैडर वोट जिनमें वही हजारों गढ़वाली मतदाता भी है वह उससे दूर नहीं जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। चुनावी परिणामों ने अब शायद भाजपा का यह भ्रम मिटा दिया होगा। हार जीत का अंतर बताता है कि मास्टर के खाते में कांग्रेस का कैडर वोट तो स्विंग हुआ ही बल्कि भाजपा का भी काफी कैडर वोट उनके खाते में गया। क्योंकि भाजपा यहां एक बड़ी जीत की उम्मीद लगाए बैठी थी।

बेशक भाजपा यहां से जीती और मास्टर जी चुनाव हार गए, लेकिन चुनाव में जिस तरह से क्षेत्रवाद के बीज बोए गए वह ना तो क्षेत्र के विकास और ना ही सौहार्द के लिए ठीक है। जिस तरह से इस चुनाव व मतगणना वाले दिन मास्टर के हजारों समर्थकों में क्षेत्रीय विधायक व मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के खिलाफ गुस्सा देखा गया, उसने आने वाले चुनावों में भाजपा व खुद प्रेमचंद अग्रवाल के लिए खतरे की घंटी जरूर बजा दी है।

विश्लेषण:अब ऐसे में क्षेत्र की जनता को भी सोचना होगा कि वह क्षेत्र के विकास व आपसी सौहार्द बनाए रखने के लिए ऐसे एजेंडे को स्वीकारती है या फिर विकासवादी सोच के साथ आगे बढ़ेगी।

गणेश वैद
(वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक)

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