हरिद्वार। विश्वभर में कोरोना की प्रलयकारी लीला जिसने लाखों जीवन समाप्त कर दिये हों उसी दौर में यदि डेंगू के समय की स्थिति पर ध्यान दिया जाये तो दोनों किसी से कम नहीं है। ये दोनांे महामारी सफाई तथा प्रकृति के साथ रहने का संदेश देती हैं। मनुष्य को अपनी जीवन शैली बदलनी ही पड़ेगी अन्यथा आने वाले समय मंे इस प्रकार की न जाने कितनी महामारियों से जीवन को दो-चार होना पडे़गा। भारत विकास परिषद पंचपुरी शाखा, हरिद्वार की पूर्व महिला संयोजिका रेखा नेगी ने कहाकि यह विचार आज का चिकित्सा सिस्टम पूरी तरह से इन महामारियों से बचाव के साधन जुटाने में लगा है। कहाकि डेंगू के प्रकोप से बचने के लिए तो हमें प्रकृति ने अपना संरक्षण प्रदान करते हुए उपचार उपलब्ध करा दिया है। परन्तु कोविड-19 से बचाव के अभी कयास लगाए जा रहे हैं। लक्षणों के आधार पर देखा जाये तो दोनों में समानता अधिक है, सिर दर्द, बुखार, गला खराब होना, मांसपेशियों में दर्द आदि गुणों के द्वारा इन दोनों की पहचान होती है। औपचारिक रूप से कोरोना के प्रभाव से बचने के लिए वैकल्पिक चिकित्सा व्यवस्था तथा घरेलू प्रयोग के सामान तुलसी के पत्ते, काली मिर्च, अदरक, अजवायन, सौंफ का काढ़ा इसके आरम्भिक प्रभाव को कम करने में लाभदायक सिद्ध हो रहा है। वहीं डेंगू के प्रकोप मे पपीते के पत्ते तथा गिलोय से बना काढ़ा असरदार होता है। इन दोनांे के संक्रमण के प्रभाव अलग अलग है। एक वायरस द्वारा सम्पर्क से फैलता है, जबकि दूसरा मच्छर द्वारा ग्रसित होने पर फैलता है।
समय की यह कैसी विडम्बना है कि मनुष्य दोनांे महामारियों के प्रभाव से बचने की स्थायी व्यवस्था होने तक प्रकृति के संरक्षण तथा स्वच्छता के संकल्प से जीत सकता है। परन्तु वह फिर भी प्रकृति के महत्व तथा हमारी घरेलू चिकित्सा व्यवस्था को अपनाने मे संकोची बना हुआ है। लेकिन आने वाला समय इस बात को सिद्ध कर देगा कि भारतीय भोजन व्यवस्था तथा आयुर्वेद ही सभी प्रकार की महामारियों के लिए अचूक दवा है। जिसे हमें अपनाना ही पडे़गा।