पुरानी अदावत के चलते कुंभ को बनाया हथियार

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अध्यक्ष ने साध्वी त्रिकाल भवंता को बताया फर्जी, महामंत्री ने नरेन्द्रानंद का शंकराचार्य के रूप में किया स्वागत
हरिद्वार।
यूं तो संत सभी का होता है। उसके लिए सभी समान होते हैं। संन्यासी की परिभाषा में भी कहा गया है कि जो सम्यक है वही संन्यासी है। जहां सम्यक रूप समाप्त होता है, वहां संन्यास भी समाप्त हो जाता है। कहा गया है कि सम्यक रूपेश न्यास इति संन्यास। किन्तु यहां व्यक्तिगत अदावत को संन्यास से ंऊपर रखा जाता है। यही कारण है कि अखाड़ा परिषद जैसे गरिमामय पद पर रहकर भी परिषद के अध्यक्ष साध्वी त्रिकाल भवंता के कुंभ में प्रवेश न करने की चेतावनी दे रहे हैं। इसी के साथ उनका कहना है कि देश में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों के केवल चार ही शंकराचार्य है। इसके अतिरिक्त कोई भी शंकराचार्य नहीं है। जो अपने आप को शंकराचार्य कहते है। वह फर्जी हैं।
बीते दिन श्री जगद्गुरु आश्रम के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम से मुलाकात के संबंध में परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि महाराज ने कहाकि वे श्रीं पंचायती अखाड़ा निरंजनी के महामण्डलेश्वर हैं। शंकराचार्य नहीं। यदि परिषद अध्यक्ष की इस बात को मान भी लिया जाए तो आज तक किसी भी पेशवायी में महामण्डलेश्वरों के साथ महामण्डलेश्वर स्वामी राजराजेश्वराश्रम पालकी पर नहीं निकले। वहीं दो दिन पूर्व स्वंय को सुमेरू पीठाधीश्वर कहने वाले शंकराचार्य नरेन्द्रानंद ने अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्री महंत हरिगिरि महाराज ने मुलाकात कर कुंभ में स्थान व सुविधाओं की मांग की। ऐसे में कौन असली है और कौन फर्जी इसका निर्णय कौन करेगा। श्रीमहंत हरिगिरि ने नरेन्द्रानंद से शंकराचार्य के रूप मंे मुलाकात की और स्वंय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत नरेन्द्र गिरि ने शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम से बतौर महामण्डलेश्वर के रूप में मुलाकात की। जबकि सत्यता क्या है यह सभी जानते हैं। देश में इस समय करीब पांच दर्जन के लगभग शंकराचार्य घूम रहे हैं। बताया जाता है कि साध्वी त्रिकाल भंवता से कुछ संतों की पुरानी अदावत है। इस कारण साध्वी के वहिष्कार की बात की जा रही है। जबकि विगत हरिद्वार कुंभ में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपांनद सरस्वती महाराज और सुमेरू पीठाधीश्वर के बीच असली और नकली को लेकर विवाद हुआ था। उस समय इस पर कोई मंथन नहीं किया गया। अब विडम्बना यह है कि एक संत से अखाड़ा परिषद के महामंत्री शंकराचार्य के रूप में मिलते हैं और दूसरी ओर परिषद अध्यक्ष उसे फर्जी बताते हैं। ऐसे में कौन असली है और कौन नकली इसका निर्णय कौन करेगा। बहरहाल अपनी पुरानी अदावत को कुंभ को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का कार्य किया जा रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि कुंभ जैसा महान पर्व केवल और केवल संत समुदाय का नहीं है। यह पर्व करोड़ों सनातन प्रेमियों और मां गंगा में आस्था रखने वालों का पर्व है। कुंभ पर्व केवल गंगा स्नान भर तक सीमित नहीं है। कुंभ गंगा स्नान के साथ विचारों के मंथन का भी पर्व है। जैसा की पूर्व में होता रहा है।

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