हरिद्वार। आगामी लोकसभा चुनावों को अब एक साल से भी कम का समय बचा है ऐसे में अभी से संतो की ओर से लोस चुनाव के लिए टिकट की मांग प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से उठनी शुरू हो गई है। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है कि जब संत समाज से इस तरह की मांग उठी हो,इससे पहले भी इस तरह की मांग उठती रही है और कई संत विभिन्न दलों के टिकट पर चुनाव लडे भी है, वह बात अलग है कि एक दो को छोड़कर सभी को हर बार हार का मुंह ही देखना पड़ा।
अगर बात हरिद्वार जिले की राजनीति की करे तो इससे पूर्व कई संतो ने राजनीतिक पैंतरे आजमाए,चुनाव लडे किन्तु हर बार शिकस्त मिली ऐसा भी नहीं कि धन बल की कोई कमी रही क्योंकि आज आम व्यक्ति की तुलना मेे संत समाज के नुमाइंदों के पास कितना धन बल है ये बात किसी से नहीं छिपी। किन्तु फिर भी चुनाव परिणामों में संत उम्मीदवारी नकार दी गई। वजह एकता का आभाव क्योंकि संत समाज से टिकट की मांग तो बड़े जोर शोर से होती है और धनबल के बूते टिकट हासिल भी कर लिया जाता है किन्तु चुनाव के वक्त वहीं संत कई खेमों में बंटे दिखाई पड़े।
पूर्व मेे हुए हरिद्वार विधानसभा चुनाव हो अथवा लोकसभा जिनमे उम्मीदवार के रूप संत चेहरा सामने रहा हो उनके क्या परिणाम सामने आए ये सभी को पता है। महामण्डलेश्वर स्वामी यतीन्द्रानंद गिरि महाराज को टिकट मिला। स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी व सतपाल ब्रह्मचारी ने विधानसभा का चुनाव लड़ा। नतीजा क्या निकला। इसके साथ ही ऋषिश्वरानंद महाराज ने भी चुनाव लड़ा। नतीजा वहीं ढाक के तीन पात वाला रहा। सभी चुनावों मंे संतांे को हार का सामना करना पड़ा। (केवल एक स्वामी जगदीश मुनि ऐसे रहे जिन्होंने विजयश्री हासिल की। वह भी राम मंदिर आंदोलन की लहर में) उस समय संतों की एकता क्यों काम नहीं आई। यहां तक की विगत विधानसभा चुनाव में तो एक संत ने दूसरे संत को टिकट न मिले इसके पूरे प्रयास किए और कई दिनों तब दिल्ली में डेरा डाले रखा। यहां तब की ऐसे संत भी हरिद्वार में मौजूद हैं। जो एक पार्टी विशेष के बड़े वफादार स्वंय को कहते नहीं थकते, किन्तु जब चुनाव का समय आता है तो वह अपनी की पार्टी के प्रत्याशी को हराने में पूर्ण सहयोग करते हैं।
बात यदि संतों की एकता की करें, तो आज जो बात किसी संत को टिकट देने की उठ रही है, इस बात की क्या गारंटी है कि टिकट मिलने के बाद संत को विजयश्री मिल ही जाएगी।