हरिद्वार। अपनी जमीन पर तो हम केवल अपार्टमेंट और होटल आदि बनाऐंगे। मां गंगा में हो रहे प्रदूषण को लेकर हम चिंतित हैं। गंगा का प्रदूषण कर हाल में दूर होना चाहिए। गंगा का प्रदूषण दूर हो इसके लिए संतों को समाधि देने के लिए शासन को संतों को भू समाधि के लिए भूमि उपलब्ध करानी चाहिए। भूमि भी कुंभ मेला आरम्भ होने से पूर्व उपलब्ध करायी जाए। जिससे कुंभ के दौरान यहां आने वाले श्रऋालुओं में संतों के गंगा में उतराते शवों को देखकर कोई गलत संदेश न जाए।
अखिल भरतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरि महाराज ने कुंभ मेला आरम्भ होने से पूर्व ब्रह्मलीन संतों को समाधि दिए जाने के लिए शासन व प्रशासन से भूमि दिए जाने की बीते रोज अपने बयान में मांग की थी। कहाकि 15 जनवरी को मेला प्रशासन के साथ अखाड़ा परिषद की होने वाली बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। उनका कहना था कि गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए संतों को जल समाधि की अपेक्षा भू समाधि दिए जानना समय की मांग है। इसके लिए प्रशासन संतों को भूमि अपलब्ध कराए।
सवाल उत्पन्न होता है कि आखिर संत समाज को शासन से ही भूमि मांगने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है। हरिद्वार में अखाड़ों के पास बेहिसाब जमीनें हैं। धन की भी कोई कमी नहीं है। पूर्व में जो जमीनें अखाड़ों और संतों को दान में मिली थी, उन पर आज बड़े-बड़े अर्पाटमेंट बन चुके हैं। होटलों का निर्माण किया जा चुका है। जो शेष बचीं हैं उन पर अपार्टमेंट बनने की तैयारियां की जा रही हैं या भू माफियाओं को बेचने की तैयारी है। ऐसे में संतों की सरकार से जमीन मांगने की बात किसी के भी गले नहीं उतर रही है। यदि मां गंगा के प्रदूषण की इतनी ही चिंता है तो कोई भी अखाड़ा दो-चार बीघा जमीन समाधि के लिए दे सकता है। किन्तु ऐसा करना किसी भी अखाड़े और संत के बस की बात नहीं है। यदि जमीन समाधि के लिए दे दी तो उस पर अपार्टमेंट कैसे बनेंगे और कैसे दो के ग्यारह का खेल होगा। अखाड़े में दो जमा कर शेष नौ अपनी जेब में कैसे आएंगे और कैसे ऐशोआराम का जीवन जीने को मिलेगा।
हालांकि समाधि के लिए भूमि की मांग कोई नई नहीं है। वर्ष 2010 में कुंभ के दौरान इस मांग को उठाया गया था और तत्कालीन सरकार ने इसके लिए हामी भी भरी थी। मगर पुनः कुंभ मेला आने से पूर्व यह मांग फिर से क्यों उठायी जाने लगी है। कारण साफ है कि कुंभ की आड़ में सरकार पर किसी भी तरह से दवाब बनाना और रुपया ऐंठने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। यदि गंगा के प्रति इनका इतना ही लगाव है तो अपार्टमेंट बनाने की बजाय कुछ जमीन समाधि के लिए अखाड़ों द्वारा दी जा सकती है। या फिर सभी अखाड़े मिलकर जमीन को खरीद सकते हैं।