हरिद्वार। सेव इंडियन फैमली फाउंडेशन द्वारा दिल्ली में आयोजित बैठक में भाग लेकर हरिद्वार लौटे उत्तराखंड प्रमुख प्रकाश चंद्र ने पत्रकारों को बताया कि देहरादून, रुड़की, सहारनपुर आदि सहित पूरे भारत से पुरुषों ने बैठक में भाग लिया।
बैठक में बड़ा सवाल ये रहा कि ’महिलाएं पुरुषों पर बोझ क्यों हो गई है ?’ प्रकाश ने बताया कि यदि किसी कारणवश शादी टूट जाती है तो कानूनन आज अदालतें उसे मजबूर करती हैं कि वह अच्छा भुगतान पत्नी और ससुराल वालों को करे। अपनी आय का कुछ हिस्सा आजीवन अपनी पत्नी को गुजारे भत्ते, भरण-पोषण के रूप में दे। फिर चाहे शादी कुछ दिन या महीना भर रही हो तथा पुरुषों को ही तलाक के लिए दोषी ठहराया जाता है। इस तरह कहा जा सकता है कि ’महिला एक बोझ है।’
एक्टिविस्ट अभिषेक शर्मा ने कहा कि नारीवाद हमेशा की तरह केवल महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बारे में ही बात करता है परिवार और समाज के नहीं। बताया गया कि आज भारतीय पुरुष पछपाती और महिला केंद्रित कानून के साथ साथ समाज के दबाव से पीडि़त है शादी करने जा रहे पुरुष से ये उमीद की जाती है कि वह कड़ी मेहनत करे और अपनी पत्नी, परिवार और बच्चों का पालन पोषण करे बिना किसी उमीद के ।
सेव इंडियन फेमली फाउंडेशन भारत में पुरुषों के अधिकारों के लिए अग्रणी गैर सरकारी संगठन है। घरेलू हिंसा, 498 तथा झूठे केस के मामलों से पीडि़त पुरुषों की मदद करता है। उच्च स्तरीय सम्मेलन में पुरुषों को आगे आकर समस्याए बताने के लिए प्रेरित किया ओर जागरूकता अभियान चलाया। सरकार को संदेश पहुंचाया ओर मांग रखी की वह लिंगभेद के कानून को सुधरे।
गुजरा भत्ता या भरण पोषण सीमित समय के लिए हो, 498 का एक तरफा कानून खत्म किया जाए, पारिवारिक समस्याओं के लिए एकल खिड़की स्थापित की जाए, पुरुषों को ब्लैकमेल होने से बचाने के लिए कानून का उपयोग न हो पाए, झूठे केस करने वाली पत्नी को सजा मिले, सम्बन्ध टूटने पर पुरुषों को बच्चों के पालन पोषण की अनुमति मिले।