रुड़की/संवाददाता
इंसान को कभी भी मुश्किल हालात में मंजिल को पाने के लिए होंसला नहीं छोड़ना चाहिए। जज्बा और हिम्मत हो तो इंसान अपने मकसद में जरूर कामयाब होता है। लेकिन अगर इन दोनों ही परिस्थितियों में इंसान कमजोर हो जाये, वह दूसरे का सहारा ढूंढने की कोशिश में लग जाता है। ऐसा ही कुछ आजकल रुड़की के मेयर और हाल ही में भाजपा ज्वाइन करने वाले गौरव गोयल के साथ होता दिख रहा है। वह इसलिए कि जिस तरीके से उन्होंने निर्दलीय तौर पर चुनाव में लोगों के यह भरोसा देकर वोट हासिल किए थे कि वह चाहे कुछ हो जाए, लेकिन भाजपा में वापसी नहीं करेंगे और आज जिस तरीके से उन्होंने अपने को पहले से ही भाजपा का सिपाही बताते हुए वापसी की, उसमें साफ तौर पर यह दिख रहा है कि उनमें न तो निर्दलीय निगम चलाने की हिम्मत रही ओर न ही वह अब क्षेत्र में एक विश्वसनीय जनप्रतिनिधि के रुप में जाने जायेंगे।
मेयर का पद एक जिम्मेदार नागरिक होने के साथ ही अलग स्थान भी रखता है, लेकिन जनता ने उनकी भोली-भाली सूरत को देखकर उन्हें जीता तो दिया, लेकिन अब उसी मेयर गौरव गोयल से विकास और जन समस्याओं के निराकरण के लिए इधर-उधर भटक रही है। क्योंकि निगम के अधिकारियों के सामने मेयर गौरव गोयल कोई मायने नही रखते, ऐसा कई बार सार्वजनिक स्थानों पर भी देखने को मिल चुका है। अब वही जनता गौरव गोयल को सिर्फ बातूनी मेयर के तौर पर जान रही है, शायद इसी कारण उन्हें 7-8 महीने बाद ही भाजपा की याद आ गयी और उन्होंने घर वापसी का नारा लगाना शुरु कर दिया। ब देखने वाली बात यह होगी कि अब भाजपा में रहते हुए गौरव गोयल विकास के कितने काम कराते है और निगम अधिकारियों से लोगों के काम कराने में कितने सफल होते है?