*केबिनेट में क्षेत्रीय संतुलन बनाना सरकार का काम:राकेश राजपूत
बद्रीविशाल ब्यूरो
उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के 25 वर्ष बाद यह पहला मौका होगा जब मैदानी जिले का कोई चेहरा प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा। अब केवल पर्वतीय क्षेत्रो से ही आए चेहरे ही धामी केबिनेट का हिस्सा है। हालांकि जल्द ही धामी मंत्रिमंडल का विस्तार देखने को मिल सकता है, लेकिन उसमें भी गारंटी नहीं कि मैदानी जिले से किसी भाजपा विधायक को केबिनेट में जगह दी ही जाए।
मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद से जिस तरह पहाड़ी समाज से जुड़े लोगों में खुशी देखी जा रही है वहीं डोईवाला क्षेत्र में प्रेमचंद के इस्तीफे के विरोध में बाजार बंद की भी खबरें सामने आ रही है। हरिद्वार में उत्तराखंड मैदानी महासभा से जुड़े पदाधिकारी एडवोकेट राकेश राजपूत का कहना है कि अगर विधानसभा स्पीकर उसी क्षण प्रेमचंद अग्रवाल को रोक देती और उनसे माफी मांगने को कहती तो उक्त टिप्पणी सदन की कार्यवाही से हटा दी जाती और सारा विवाद वहीं समाप्त हो जाता लेकिन स्पीकर ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कहा कि इस बवाल के दोषी जितने विधायक प्रेमचंद है उतनी ही दोषी स्पीकर भी है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सबका है और प्रदेश के विकास के लिए सरकार के केबिनेट में क्षेत्रीय संतुलन बनाना मुख्यमंत्री का काम है।
बता दें कि छोटे से राज्य उत्तराखंड में इन दिनों पहाड़ और मैदान को लेकर एक जंग देखी जा रही है जो जगह जगह विवाद का कारण भी बनती देखी गई जो कई बार कोतवाली की चौखट तक भी पहुंचा। अब एक बार फिर से विधायक प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे से पहाड़ और मैदान के बीच एक खाई सी पटती नजर आ रही है।
लेकिन कुल मिलाकर इस वक्त उत्तराखंड की फिजा में विकास की बजाए क्षेत्रवाद की नीति को ज्यादा तूल दिया जा रहा है। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में जब धामी मंत्रिमंडल का विस्तार होगा तो उसमे मैदानी जिले से आए चेहरे को जगह मिलेगी या पहाड़ का ही प्रतिनिधित्व देखने को मिलेगा। फिलहाल तो धामी केबिनेट मैदानी प्रतिनिधित्व से विहीन ही है।