लॉकडावन में संगीत साधना सिख रहे शांति कुंज के नौनिहाल

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हरिद्वार। कहते है संगीत साधना शक्ति ईश्वर की भक्ति है। इस वाक्य को शांतिकुंज के बच्चांे ने होम कोरोंनटाइन के समय को अपनी संगीत साधना कर समय व्यतीत करने के रूप में किया है। आज पूरा विश्व जब कोरोना वायरस से ग्रसित हैं तब शांतिकुंज के अधितकर बच्चों ने अपने अभिभावक शैल बाला पंड्या एवं डॉ प्रणव पंड्या के मार्गदर्शन से संगीत की साधना कर रहे है। सभी बच्चे अपने आवास पर अभ्यास कर्म के साथ दिन भर संगीत के विभिन्न वाद्यों का अभ्यास करते है। आहुति पंड्या, स्तुति पंड्या, चेतना, तन्मय, जान्हवी, प्रज्ञेश बेहरा, कृष्णा, पूजा, पयश्वनी आदि जहां वोकल का अभ्यास कर रहे है। वही पार्थ, विपुल, आवृत तबला बजा कर अपना समय व्यतीत रहे हैं। उल्लेखनीय है की पयश्वनी यादव संतूर सिख रही है तो, प्रज्ञेश गढ़वाल पखावज में अपना हाथ साफ कर रहे हैं। संगीत विभाग शांतिकुंज से मिली जानकारी के अनुसार लगभग 45 से अधिक बच्चों ने अपनी दैनिक दिनचर्या में संगीत साधना कर रहे हैं।
बच्चों के उत्साह संवर्धन के लिए मिडिया से बातचीत में गायत्री परिवार प्रमुख डॉ प्रणव पंड्या ने कहा की शांतिकुंज के इन बच्चों ने कोरंटीन से चिंतित लोगों को नया सन्देश दिया है। शारीरिक अथवा मानसिक कोई भी विकृति ऐसी नहीं जिसकी चिकित्सा संगीत की स्वर लहरियों द्वारा न हो सके, यह बात बड़े-बड़े वैज्ञानिकों तथा स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने विभिन्न प्रकार के रोगियों पर, पागलखानों आदि में प्रयोग करके सिद्ध कर दिया है। उनका कहना है कि सम्पूर्ण शरीर में जो तनाव या विकृति पैदा होती है, उसका मूल आधार मस्तिष्क के ज्ञान-तन्तु हैं। संगीत से कानों पर लगी नैसर्गिक झिल्ली प्रकम्पित होती है जो सीधा मस्तिष्क को प्रभावित करती है। मस्तिष्क स्नायु-तन्तुओं के सजग होने से सम्पूर्ण शरीर में चेतना दौड़ जाती है और शक्ति प्रदान करती है जिससे सरलता पूर्वक आरोग्य लाभ मिलने लगता है। संगीताभ्यास के समय चित्त को न केवल विश्रान्ति मिलती है वरन आत्मिक शक्तियां भी जागृत होती हैं।
बताया कि गायन एक उच्चकोटि का मृदु व्यायाम है। कुश्ती, दौड़ आदि से फेफड़ों की कभी मन्द उत्तेजना उठती है जो हानिकारक भी हो सकती है। किन्तु गाने से हल्की-हल्की मालिश जैसी क्रिया फेफड़ों में होती है, इससे रुधिर में प्राकृतिक विद्युत का अनुपम संचार होने लगता है।

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