हरिद्वार। आत्मा सो परमात्मा एक सारगृभित वाक्य है। परमात्मा का स्वरूप एवं सत्ता का मूल आत्मा से ही रेखांकित होता है। आत्मा ही मनोविज्ञान का आधार स्तम्भ है। जिसके स्वरूप को मनोविज्ञानी ‘अनुभव तथा अहसास’ के साथ जोड़ते हैं। गुरूकुल कांगडी समविश्वविद्यालय के एसोशियेट प्रोफेसर डॉ. शिवकुमार चौहान ने शारीरिक शिक्षा के छात्रों को आत्मा सो परमात्मा विषय पर संवाद करते हुये कहाकि शरीर मे आत्मा का स्थान जानकर इसके स्वरूप का चिन्तन सम्भव है। शरीर में हर अंगों का एक निश्चित स्थान होता है। दिमाग सिर में होता है, दिल सीने में और किडनियां पेट में होती हैं। हम सभी इन बातों को जानते हैं, लेकिन जब आत्मा की बारी आती है तो हम नहीं बता पाते हैं कि शरीर के अंदर आत्मा कहां रहती है। ज्ञानी पुरूषों का कहना है कि आत्मा सहस्रार चक्र में रहती है। यह इंसान के दिमाग का एक हिस्सा है। जिस स्थान पर चोटी रखते हैं ठीक उसी जगह पर यह स्थित होती है। उन्होंने कहाकि शास्त्रों में भी ऐसा ही बताया गया है कि आत्मा का निवास मस्तिष्क में ही है। नए अध्ययनों बताते हैं कि तंत्रिका तंत्र से जब क्वांटम पदार्थ कम होने लगता है तब मौत का अनुभव होता है। एरिजोना विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग के प्रोफेसर एमरेटस और रिसर्च विभाग के निदेशक डॉण्स्टुवर्ट हेमेराफ ने आत्मा के बारे में कहाकि मस्तिष्क की कोशिकाओं के अंदर बने ढांचों में आत्मा का मूल स्थान होता है, जिसे माइथाट्यूबस कहा जाता है। डात्र चौहान ने कहाकि योग की भाषा में इस केंद्र को सहस्रार चक्र या ब्रह्मरंध्र के नाम से जाना जाता है। इंसान की मौत हो जाने के बाद आत्मा शरीर के उस भाग से निकलकर बाहरी जगत में फैल जाती है। शास्त्रों में भी कुछ ऐसा ही कहा गया है कि मौत के बाद देह से निकलकर यह आत्मा दूसरे लोकों की यात्रा पर निकल जाती है। आत्मा सो परमात्मा विषय पर संवाद मंे बीपीएड तथा एमपीएड0पाठयक्रम के छात्रों ने भाग लिया तथा रोचक प्रश्नों पर अपने विचार भी साझा किये।
