भगवान को बेचने वाले कुंभ में मांग रहे सुविधा

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हरिद्वार। 11 दिसम्बर को श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी में आयोजित अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की बैठक मंें संतों ने सर्वसम्मति से प्रयागराज में संगम किनारे बने मंदिरों को तोड़े जाने, हरिद्वार में बैरागी कैंप व मेला भूमि पर अतिक्रमण को हटाकर संतों को सौंपे जाने और अखाड़ों को कुंभ मेले के दौरान सभी प्रकार की सुविधा दिए जाने की मांग की।
सवाल प्रयागराज में संगम तट पर बने मंदिरों को तोड़े जाने का, तो जो मंदिर वहां बनाए गए हैं उनमें से अधिकांश सरकारी जमीन पर कब्जा कर बनाए गए हैं। दूसरा की मंदिरों की रक्षा की संत समाज ने हुंकर भरी। उन्हें इस बाबत भी सोचना चाहिए कि जो मंदिर संतों के अधिकार क्षेत्र में हैं उनमें से अधिकांश को उन्होंने ठेके पर दिया हुआ है। या यूं कहें कि वर्ष भर के लिए भगवान में आस्था रखने वाले भगवान को बेचने का कार्य कर रहे हैं। जिस भगवान की जैसी मान्यता उसका उतना ही ऊंचा दाम। अब ऐसे में मंदिरों के संरक्षण की बात यदि संत समाज करता है तो उसमें बुराई क्या। आखिर वर्षभर के लिए भगवान को बेचकर मिलने वाला धन उनके ऐशोआराम के लिए ही तो इकट्ठा होता है।
विचारणीय यह कि जो अपने ऐशोआराम के लिए भगवान तक को बेचने का कार्य कर रहे हैं वह समाज में फैली विकृति को कैसे दूर कर सकते हैं और कैसे स्वंय को सनातन धर्म का धर्म ध्वजावाहक कह सकते हैं। दूसरा की हरिद्वार स्थित बैरागी कैंप की भूमि अतिक्रमण मुक्त कर संतों को सौंपी जाए। बता दें कि विगत 2010 के कुंभ मेले के दौरान बैरागी संतों को छावनी के लिए भूमि आबंटित की गई थी। मेला समाप्ति के बाद वहां उन्होंने पक्के निर्माण स्थापित कर कब्जा कर लिया। वहां भी इन्होंने भगवान की मूर्तियां स्थापित कर भगवान को ढाल के रूप में इस्तेमाल किया। इसके साथ जो संत समाज आज अखाड़ों की छावनियों के लिए सरकार और मेला प्रशासन से भूमि की मांग कर रहा है, सरकार और मेला प्रशासन को उनसे संतों और समाज के लिए अखाड़ों को मिली भूमि के संबंध में जानकारी लेनी चाहिए की आखिर संतों की छावनियों के लिए उपयोग में आने वाली भूमि कहां गई। अपने ऐशोआराम के लिए मोटे दामों पर भूमि को बेचकर वहां बड़े-बड़े अर्पाटमेंट बना दिए गए और करोड़ों के व्यारे-न्यारे कर लिए।
रहा सवाल सारी सुविधांए कुंभ के दौरान संतों को उपलब्ध कराने का, तो सरकार और मेला प्रशासन को इस पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। कारण की अखाड़ों की अकूत सम्पदा को अपने विलासितापूर्ण जीवन जीने के लिए इस्तेमाल करते हुए अब विलासितापूर्ण जीवन छोड़ना इनके लिए मुमकिन नहीं है। ऐसे में कुंभ मेला निर्विघ्न सम्पन्न कराने के लिए सुविधाएं मुहैय्या तो करानी चाहिए।

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