धर्म के ठेकेदारों के यहां जमकर हो रहे अधर्म के काम

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सेक्रेटरी से लेकर थानापति बनाने तक लिया जाता है मोटा धन

धार्मिक सम्पत्तियों को खुर्दबुर्द करने वालों को सरकार क्यों देती है कुंभ में पैसा
हरिद्वार।
वर्ष 2021 में होने वाले कुंभ महापर्व का बिगुल बज चुका है। सरकार के साथ अखाड़े भी कुंभ की तैयारियों में जुटे हैं। वहीं कुंभ कार्यों की धीमी गति से संतों मंे नाराजगी है। इस बात को संत समाज व अखाड़ा परिषद कई बार उठा चुकी है। इसी के साथ अखाड़ों में होने वाले कुंभ कार्यों के लिए अखाड़ों के संतों ने प्रदेश सरकार से पांच करोड़ रुपये दिए जाने की मांग की है। फिलहाल तो सरकार ने अखाड़ों को कितना धन दिया जाएगा, यह स्पष्ट नहीं किया है किन्तु चर्चा है कि कुछ न कुछ सरकार अखाड़ों को प्रयागराज और उज्जैन कुंभ की तरह अखाड़ों को आर्थिक मदद देगी।
सरकार द्वारा कुंभ पर्व पर बेहतर सुविधाएं संतों और आने वाले श्रद्धालुओं को देना सरकार की जिम्मेदारी है। किन्तु अखाड़ों को धन देने की प्रथा अजीब जरूर है। सरकार ने आम जनता पर कमाए गए धन पर तरह-तरह के टैक्स लगाए हुए हैं। यदि सरकार अखाड़ों को धनराशि उपलब्ध कराती है तो वह कहीं न कहीं जनता को ही पैसा होगा। देखा जाए तो अखाड़ों को धन देने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। कारण की अखाड़ों के पास अपनी ही अकूत सम्पदा है। अखाड़ों की जमीनों पर आज बड़ी-बड़ी इमारतें बनाकर उनको बेचा जा रहा है और करोड़ों की कमाई की जा रही है। वहीं कुंभ में अखाड़े का कुछ भी खर्च नहीं होता। जो खर्च होता भी है वह स्नान पर्व पर देवता की पुकार के नाम पर मण्डलेश्वरों व महंतों आदि से इकट्ठा हो जाता है। वहीं भण्डारों भर से ये लाखों रुपये इकट्ठा कर लेते हैं।
इतना ही नहीं धर्म की दुहाई देने वाले संत अखाड़ों में खुद अधर्म का कार्य करते हैं। मण्डलेश्वर बनाने के लिए लाखों रुपये चढ़ावे के नाम पर मण्डलेश्वर बनने वाले संतों से लिए जाते हैं। वहीं सबसे रोचक बात यह है कि अखाड़ों में जब पद बटते है। तो उनकी भी बोली करोड़ों में में होती है। अखाड़े का सेक्रेटरी बनने के लिए एक से दो करोड़ का चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है। इसके साथ श्रीमहंत, कारोबारी महंत, कोठारी महंत, अष्ट कौशल महंत, थानापति, सभापति आदि बनाने के लिए 25 लाख से 1 करोड़ तक लिए जाते हैं। यह किसी एक अखाड़े में नहीं होता करीब-करीब सभी का ऐसा ही हाली है।
सवाल उठता है कि एक पद पाने के लिए धर्म के स्थानों पर रिश्वत का बोलवाला हो तो ऐसे स्थानों व लोगों से धर्म की कल्पना कैसे की जा सकती है। वहीं जब व्यक्ति लाखों-करोड़ों देकर एक पद प्राप्त करेगा तो वह उस स्थान पर रहकर कैसे ईमानदारी से काम करेगा इसका अंदाजा स्वंय लगाया जा सकता है। ऐसे में सरकार से कुंभ के नाम पर धन मांगने वालों के संबंध में भी सरकार को सोचना चाहिए। वहीं जब आम जनता पर सरकार टैक्स को शिंकजा कसती है तो इनके धन की भी जांच क्यों नहीं की जाती। आखिर क्या ऐसे लोग जनता और सरकार के पैसे पर ऐश करने के लिए ही हैं।

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