सबहिं नचावत राम गोसाईं

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राम मंदिर ट्रस्टः निर्मल मन जन सो मोही पावा……..
महेश पारीक
हरिद्वार।
विश्व में अनेक धर्म हैं और उन सभी धर्मों में सृष्टि के संचालन की बात कहीं न कहीं परम शक्ति के हाथों में बतायी गई है। गोस्वामी तुलसी दास महाराज ने भी अपने ग्रंथ कवितावली में उल्लेख किया है कि सबहिं नचावत राम गोसाईं। अर्थात भगवान जिसको जैसा चाहते हैं वैसा ही नचाते हैं। अर्थात बिना भगवान की इच्छा के कुछ भी हो पाना संभव नहीं है।
अयोध्या राम मंदिर विवाद को ही ले लें। विगत करीब 500 वर्षों से यह विवाद चला आ रहा था। अब जाकर काफी हद तक श्री राम मंदिर निर्माण का मार्ग सर्वोच्च न्यायलय द्वारा प्रशस्त किया गया है। कुछ अडचनें शेष हंै। वह भी शीघ्र समाप्त हो जाएंगी ऐसी उम्मीद की जा सकती है। किन्तु श्री राम मंदिर निर्माण में अब सबसे बड़ी बाधा सनातन धर्म का स्वंय को धर्मध्वजा वाहन कहे जाने वाले संत ही हैं। कारण की सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट गठन की बात कही है। जिसके गठन का जिम्मा केन्द्र सरकार को सौंपा गया है। जिसमें निर्माेही अखाड़े की सहभागिता को सुनिश्चित करने का न्यायालय ने आदेश दिया है। न्यायालय के इस आदेश के बाद ट्रस्ट में शमिल होने वालों की लम्बी फेहरिस्त सामने आने लगी है। इन सबके बीच अब राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास के वक्तव्य ने इस पूरे प्रकरण को एक नया मोड़ दे दिया है। उन्होंने कहा है कि जब पहले से ही राम जन्मभूमि न्यास कार्य कर रहा है तो नए ट्रस्ट की क्या आवश्यकता है। उन्होंने यह बात केंद्र सरकार को भी अपने पत्र के माध्यम से कह दी है कि राम जन्मभूमि न्यास को ही मंदिर निर्माण की पूरी जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए। दिगंबर अखाड़े से जुड़े लोगों का मानना है कि उनका भी श्रीराम मंदिर ट्रस्ट मंे नाम होना चाहिए। रामलला विराजमान पक्षकार और राम जन्मभूमि न्यास के सदस्य त्रिलोक नाथ पांडे ने पुजारी बनने का दावा कर दिया है। राम मंदिर के पक्षकार महंत धर्मदास ने भी पत्र के माध्यम से प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को अपने पुजारी बनने का आग्रह किया है। उधर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती अपने द्वारा गठित रामालय ट्रस्ट को सबसे उपयुक्त मानते हैं। वहीं कुछ लोग स्वंय को राम का वंशज बताकर मंदिर ट्रस्ट में जगह मांग रहे हैं। इन सबके बीच अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद भी कूद गई है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि का कहना है कि श्री राम मंदिर ट्रस्ट में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और महामंत्री को अवश्य शामिल किया जाना चाहिए।
सवाल उठता है कि आखिर क्यों अचानक संत समाज जो अभी तक केवल येन-केन-प्रकारेण केवल मंदिर निर्माण की वकालत करता था, ट्रस्ट में शामिल किए जाने के लिए उतावला होने लगा है। हिन्दू महासभा और विहिप भी ट्रस्ट में शामिल किए जाने की मांग कर चुके हैं। विश्व हिन्दू परिषद और निर्माेही अखाड़े के दावे को एक प्रकार से सही कहा जा सकता है। कारण की निर्माेही अखाड़े और विहिप ने राम मंदिर निर्माण के लिए शुरू से लड़ाई लड़ी। इन सबमें अखाड़ा परिषद का कहीं कोई रोल नहीं था। हां इतना अवश्य है कि संतों की इस आंदोलन में लालकृष्ण आडवाणी के साथ महती भूमिका रही। किन्तु सभी सतों को तो ट्रस्ट में समाहित नहीं किया जा सकता। जो अखाड़ा परिषद अध्यक्ष और महामंत्री को शामिल किए जाने की सरकार से मांग कर रहे हैं उनकी मंदिर आंदोलन में कोई खास भूमिका नहीं रही।
सवाल उठता है कि क्या मंदिर ट्रस्ट में शामिल होने की अभिलाषा रखने वाले संतों को क्या ट्रस्ट में शामिल किए जाने मात्र से श्री राम का सानिध्य प्राप्त हो जाएगा। ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह मांग केवल ट्रस्ट में शामिल होकर अपना प्रभुत्व बढ़ाने वाले कृत्य जैसा है। ट्रस्ट में शामिल होने पर उसकी आड़ में धनोर्पाजन के रास्ते भी खुल सकते हैं। सरकार और समाज में दबदबा कायम करने की सोच के चलते भी ऐसी मांग की जा रही है।
सच मानिए तो श्री राम से किसी को कुछ लेनादेना नहीं है। यदि लेनादेना होता तो ट्रस्ट निर्माण का जो जिम्मा सरकार को सौंपा गया है, उसे वह कार्य करने देते। यदि कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि ट्रस्ट में शामिल होकर वह श्री राम का सानिध्य प्राप्त कर लेंगे तो यह दुनिया को और स्वंय को भ्रमित करने जैसा कार्य है। भगवान की भक्ति कहीं भी और किसी भी स्थिति में रहकर की जा सकती है। भक्ति और प्रेम के लिए किसी पद की आवश्यकता नहीं होती। शबरी तो कहीं किसी पद पर नहीं रही और न ही किसी मंदिर में जाकर उसने राम को पुकारा। उसकी भक्ति के कारण भगवान राम उसे दर्शन देने के लिए स्वंय जंगल पहुंचे। भगवान ने अहिल्या का स्वंय जाकर उद्धार किया। गज के पुकारने पर भगवान ने ग्राह से उसकी रक्षा की। फिर ट्रस्ट में शामिल होकर कुछ संत क्या पाना चाहते हैं।
संतों की यह मांग किसी मजाक से कम नहीं कही जा सकती। मजाक इस कारण से की जो स्वंय अपने मंदिरों को ठेके पर देते हैं और मठों की भूमि को बेचकर ऐश की जिंदगी व्यतीत कर रहे है। उन्हें श्री राम से क्या लेनादेना हो सकता है। बस उनके ऐशोआराम के साधन पूरे होने चाहिए। यदि ऐसा न होता तो जिस भगवान को दुनिया मानती है उसे ठेके पर देकर धर्म के ठेकेदार यूं न बेचते। वैसे देखा जाए तो ट्रस्ट में शामिल होने की मंशा रखने वालों पूरी होती दिखायी नहीं देती है। जैसा की गोस्वमी तुलसीदास महाराज ने कहाकि सबहीं नचावत राम गोसांईं। वहीं रामचरित मानस के सुंदरकांड में भी गोस्वामी जी ने लिखा है कि निर्मल मन जन सो मोही पावा, मोही कपट छल छिद्र न पावा। इस चैपाई के हिसाब से भगवान को ठेके पर बेचने वालों की मंशा को स्वंय भगवान पूरी नहीं होने देंगे। भगवान को केवल शबरी और अहिल्या जैसे भक्तों की आवश्यता है, कपटी और लम्पटों की नहीं। यही कहा जा सकता है कि भगवान सबको नाच नजा रहा है और उसके इशारे पर सभी ट्रस्ट में शामिल होने की मांग करते हुए नाच रहे हैं।

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