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हरिद्वार। आवाह्न अखाड़े द्वारा आचार्य मण्डलेश्वर बनाए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इसको लेकर संतों की जहां अलग-अलग राय हैं वहीं अखाड़े के संत भी इस मुद्दे को लेकर दो फाड़ नजर आ रहे हैं। अधिकांश संत आचार्य पद पर अरूण गिरि की ताजपोशी को परम्पराओं के विपरीत बता रहे हैं।

जूना अखाड़े के महामण्डलेश्वर स्वमी प्रबोधानंद गिरि महाराज तो खुलकर इसका विरोध करते हुए कई गंभीर आरोप अरूण गिरि पर लगा चुके हैं। आचार्य पद पर अरूण गिरि की 11 मार्च को ताजपोशी होनी है।
सूत्र बताते हैं कि अरूण गिरि को लेकर आवाह्न अखाड़े के संत ही दो फाड़ हो चुके हैं। कुछ अरूण गिरि के समर्थन में हैं तो कुछ इसे गलत बताते हुए किसी और पर इस कार्य का ठीकरा फोड़ रहे हैं। अखाड़ा सूत्रों के मुताबिक एक दूसरे अखाड़े का संत इस काम में सबसे अधिक हस्तक्षेप कर रहा है। अरूण गिरि भी उसी की देन है। जबकि वे किसी अन्य अखाड़े के संत का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करते।

संतो का कहना है कि एक संत अरूण गिरि को अपने व कुछ संतों के स्वार्थ के लिए अखाड़े पर थोपने का कार्य कर रहा है। यहां तक की संत समाज में फैले विद्वेष के पीछे भी उसी संत का हाथ है। उस संत को परम्पराओं और संत समाज की गरिमा से कोई वास्ता नहीं है। उसे केवल धन की ही लालसा है, जिसके चलते वह अनर्थ के काम करता रहता है। अरूण गिरि के रूप में बनने जा रहे आचार्य वाला अनर्थ भी उसी की देन है। जबकि अखाड़े के कुछ संत धन के आगे परम्पराओं को भेंट चढ़ाने का कार्य करने में तुले हुए हैं। जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और समय आने पर इसका जवाब भी दिया जाएगा। उन्होंने स्वामी प्रबोधानंद के बयान का भी समर्थन करते हुए कुछ पदाधिकारियों की जांच की मांग की। संतांे का कहना है कि धन बल के आगे परम्पराओं को बलि की बेदी पर नहीं चढ़ने दिया जाएगा।

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