रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की (आईआईटी रुड़की) ने राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की (एनआईएच-रुड़की) के सहयोग से तीन-दिवसीय रुड़की वाटर कॉन्क्लेव (आरडब्ल्यूसी) का शनिवार को समापन हो गया। इस द्विवार्षिक आरडबल्यूसी-2020 के पहले संस्करण का केंद्र हाइड्रोलॉजिकल आस्पेक्ट्स ऑफ क्लाइमेट चेंज था।
उपेंद्र प्रसाद सिंह, सचिव, जलशक्ति मंत्रालय, केन्द्रीय जल आयोग, नदी विकास और गंगा रेजुवनेशन विभाग नई दिल्ली ने बतौर मुख्य अतिथि कहाकि विश्व वैश्विक जलवायु और जलीय संसाधनों पर व्यापक प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता है। दुनिया भर में मीठे पानी के स्रोत दिनों-दिन घटते जा रहे हैं, और यह आवश्यक हो गया है कि इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए कुछ बेहतर समाधानों की तलाश की जाए। ऐसा अनुमान है कि पानी की कमी पूरे विश्व को प्रभावित करेगी। लेकिन विकास के शुरुआती दौर से गुजर रहे देशों पर इस जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव पड़ सकता है। क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्था मुख्यतया कृषि पर निर्भर होती है, जिसके लिए पानी एक बहुत बड़ी आवश्यकता है।
इन तीन दिनों में जल विज्ञान से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर कुल 138 तकनीकी पत्र प्रस्तुत किए गए और विभिन्न वक्ताओं ने 33 मुख्य विषयों पर अपने ज्ञान और अनुभव साझा किये। प्लेनरी सेशन कॉन्क्लेव का आखिरी सत्र था।
आरडब्ल्यूसी जैसे कॉन्क्लेव की आवश्यकता के बारे में बोलते हुए उपेंद्र प्रसाद सिंह ने कहाकि जलवायु परिवर्तन हमारे समय की सबसे बड़ी समस्या है। जल विज्ञान के क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए आवश्यक नवाचार से संबन्धित विचार-विमर्श के लिए आरडब्ल्यूसी जैसा मंच आज की जरूरत है।
एनआईएच रुड़की के निदेशक, डॉ. शरद के जैन ने इस सम्मेलन के प्रभाव पर बात करते हुए कहाकि आरडब्ल्यूसी के दौरान विचार-विमर्श में ग्लोबल वार्मिंग और घटते पेय जल संसाधनों से संबन्धित कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल किया गया। हम सभी स्थिति की गंभीरता से सहमत हैं, लेकिन यह देखना काफी उत्साहजनक है कि हमारे पर्यावरण के संभावित नुकसान को कम करने या रोकने के लिए दुनिया भर में कदम उठाए जा रहे हैं।