रमन रेती में कार्षिण गुरु शरणानंद महाराज के सानिध्य में चल रही रामकथा के सातवें दिन योग ऋषि स्वामी रामदेव पहुंचे। जहां मोरारी बापू ने उनका स्वागत किया।
इस दौरान मोरारी बापू ने स्वामी रामदेव को वैश्विक योग-संचार का केन्द्र बताते कहा कि आपने सबका योग करवाया है, किसी का वियोग नहीं करवाया। योग गुरु ने पचास साल में डेढ़ सौ साल का काम किया है। इसके लिए जगत उनका कर्जमंद रहेगा।
निष्केवल प्रेम के बदले में परमात्मा भी कुछ नहीं दे सकता। इस बात को स्पष्ट करते हुए बापू ने कहा कि राम राज्य की स्थापना के बाद भगवान ने कौल-कीरातों के लिए क्या किया। मीरा के लिए गोविंद ने क्या किया? प्रेम का अंतिम चरण है विगलित हो जाना। ऐसे प्रेमियों को बदले में कुछ देने की चेष्टा अपमान है।
उन्होंने कहाकि रामचरितमानस पूर्णतः समर्पण का शास्त्र है। रामायण के आदि को सत्य, मध्य को प्रेम और अंत को करुणा कहा गया है। उन्होंने कहाकि सत्य से जो संतान प्रकट होती है उसका नाम है अभय। जहां सत्य होता है वहां अभय होता ही है। प्रेम से जो संतान प्रकट होती है वह है त्याग। प्रेम आएगा तो समर्पण आएगा ही। केवल मुक्ति, केवल ज्ञान, केवल निर्वाण की चर्चा ग्रंथों में मिलती हैं पर मानस में प्रधान रूप से केवल प्रेम की चर्चा है। प्रेम की कुछ श्रेणियां बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रेम लाक्षावत, घृतवत् और मधुवत् होता हैं। प्रेमधारा के कुछ प्रतिबंधक तत्वों की चर्चा करते हुए बापू ने कहाकि आशाबंध प्रेम का प्रतिबंधक तत्त्व है। आशा एक ठाकुर जी से ही होनी चाहिए। तू ना मिले तो कोई चिंता नहीं, तेरा प्यार मिले। प्रेमधारा का दूसरा प्रतिबंधक तत्व है उन्होंने कहाकि प्रेम करने वाले पर बहुत कष्ट आएंगे। पर आखिरी क्षण तक टिके रहना वो तो गुरु कृपा से ही संभव है। दुःख के लम्हों में उद्वेग नहीं करना चाहिए क्योंकि हमारे पास महाभारत, रामायण, वेद, उपनिषद, दर्शनशास्त्र, संत-आचार्य सबका संबल हैं। उन्होंने कहाकि परमात्मा के नाम में, धाम में, भगवद् चरित्र में हमारी रुचि बढ़े तो समझना कि प्रेम प्रवाह बढ़ रहा है।