वन विभाग व एचआरडीए की मिलीभगत से चली पेड़ों पर आरी
हरिद्वार। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सनातन धर्म और पौराणिक महत्व के धार्मिक स्थलों को सनातन संस्कृति के अनुरूप विकसित कर चहुमुंखी विकास की आधारशिला रखना चाहते हैं। इसी के चलते काशी और महाकाल कॉरीडोर का निर्माण कर वहां विकास की गंगा बहाने का कार्य किया गया। इसी कड़ी में हरकी पैड़ी कोरिडोर का निर्माण कार्य भी किया जाना है। उसका स्वरूप क्या होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है। साथ ही विकास प्राधिकरण भी शहर के विकास का दावा कर रहा है। प्राधिकरण का दावा है कि कई सौ करोड़ रुपयों की योजनाओं के द्वारा हरिद्वार का चहुंमुखी विकास प्रस्तावित है।
क्या सही मायने में विकास के लिए प्राधिकरण प्रतिबंद्ध है, यह बड़ा सवाल है। प्राधिकरण विनाश की आधारशिला पर विकास की इमारत को खड़ा करने के मंसूबों को पाल रहा है। हाल ही में प्राधिकरण के विकास की फेहरिस्त में भल्ला कालेज स्टेडियम का निर्माण कार्य चल रहा है। पूर्व में जब भल्ला कालेज स्टेडियम का निर्माण किया गया था, उस समय भी स्टेडियम के नाम पर दर्जनों पेड़ों की बलि दे दी गई। वहीं अब एक बार फिर से प्राधिकरण के विकास की आधा दर्जन से अधिक वर्षों पुराने पेड़ों पर रात के अंधेरे में आरी चला दी गई। रातों-रात पेड़ काटकर लकडि़यों को भी ठिकाने लगा दिया गया, किन्तु पेड़ के ठूंठ अपनी रात के अंधेर में की गई हत्या की कहानी बयां करने के लिए मौजूद रहे। वर्षों पुराने करीब आठ पेड़ों पर आरी चलायी गई। जबकि एक आम आदमी द्वारा पेड़ काटने की बात तो दूर पेड़ की शाख काटने पर भी उसे समस्याओं से दो-चार होना पड़ जाता है, किन्तु यहां कौन कहने वाला। कहावत है न की जब सैंया भये कोतवाली तो डर काहे का।
विकास के नाम पर कितनी भी विनाश लीला कर लो, सब जायज हो जाता है। यही हाल बैटमिंटन कोर्ट के बाहर सड़क किनारे खड़े पेड़ों का हुआ। इस सबंध में जब हरिद्वार-रूड़की विकास प्राधिकरण के जेई टीपी नौटियाल से फोन पर वार्ता करने की कोशिश की तो उन्होंने फोन उठाना मुनासिब नहीं समझा। ऐसा ही कुछ हाल वार्डन का भी रहा। फोन की घंटी बजती रही और फोन नहीं उठाया गया।
उधर मेसर अनीता शर्मा से पेड़ों के संबंध में जब पूछा गया तो उन्होंने कहाकि उन्हें पेड़ों के काटे जाने के संबंध में कोई जानकारी नहीं है। और न ही उनसे किसी प्रकार की पेड़ काटे जाने को लेकर अनुमति ली गई।
ऐसे में सामाजिक संगठनों और पर्यावरण प्रेमियों की चुप्पी भी विचारणीय है। जबकि पर्यावरण दिवस पर पेड़ों को बचाने की शपथ बड़े जोर-शोर से ली गई थी और मीडिया में पर्यावरण प्रेमी होने का जोर-शोर से फोटो खिंचाकर प्रचार करने में भी कोई कोर कसर नही छोड़ी गई थी।
सवाल उठता है कि आखिर वर्षों पुराने आठ पेड़ों को काटने की कौन सी ऐसी जरूरत थी की, यदि इनको काटा न जाता तो कौन सा विकास शहर का प्रभावित हो जाता। यह स्थित तब है जब देश के कई राज्य दम घोंटू हवा में सांस तक नहीं ले पा रहे हैं। हरिद्वार शहर में जहां सांस लेने के लिए शुद्ध और भरपूर आक्सीजन है, वहां अधिकारी पेड़ों को काटकर विकास की नई इबारत लिखने को लालयित हैं। ऐसे में शहर और शहरवासियों का भगवान ही मालिक है।