मरने के बाद भी इलाज करते रहे चिकित्सक

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हरिद्वार। चिकित्सक के भगवान से दानव बनने का एक ऐसा ही मामला रुड़की के एक निजी अस्पताल में सामने आया है। जहां मृतक के इलाज के नाम पर 25 हजार परिजनों से ऐंठ लिए।
ज्ञात रहे कि रुड़की के नीजि अस्पताल में एक मरीज की मृत्यु हो गई। अस्पताल प्रबंधन ने घंटों तक उसके ईलाज के नाम पर परिजनों को गुमराह किया और पेशे ऐंठने की मुहिम जारी रखी। यह घटनाक्रम बिल्कुल उसी तरह है, जिस तरह से 2015 में हिंदी सिनेमा जगत के चर्चित अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म गब्बर इज बैक रिलीज मूवी में एक घटना दिखाई गई थी। ऐसे में यह कहना भी गलत नहीं होगा कि जो कुछ मूवी में दिखाया जाता है, वही असल जिंदगी में हो। बताया गया है कि 24 जून को लक्सर क्षेत्र निवासी सतीश को निमोनिया की शिकायत पर सुबह 3 बजे रुड़की के एक हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। इस दौरान मरीज के परिजनों द्वारा इमरजेंसी फीस 1,200 रुपये भी जमा कराई गई थी। जिसके बाद सुबह 8 बजकर 24 मिनट पर मरीज का ब्लड चेक कराया गया। वही, 8. 36 मिनट पर उसके लिए दवाईयां भी लिखी गई। यानि साढ़े 6 घण्टे तक ईलाज बदस्तूर जारी रहा, जिसके बाद 9 बजकर 34 मिनट पर मरीज को मृतक बताकर डिसचार्ज कर दिया गया। इस दौरान मरीज के परिजनों से 24 हजार रुपये की रकम भी वसूली गई। मरीज के परिजनों के होश उस वक्त फाख्ता हो गए, जब उन्हें डेथ सर्टिफिकेट यानी मृत्यु प्रमाण पत्र दिया गया, तो उसमें मृत्यु का समय सुबह 5 बजकर 54 मिनट अंकित किया गया। यानी इस दौरान जो ईलाज या खून की जांच कराई जा रही थी, वो सब ढोंग था। मरीज से सिर्फ पैसे बनाएं जा रहे थे। क्योंकि इस दौरान किसी भी परिजन को मरीज के कमरे में नहीं जाने दिया गया। इस मामले में जब सभी बिल और कागजों को मृतक के साले कपिल ने गौर किया, तो उसने अस्पताल प्रबंधन से पूरी जानकारी लेनी चाही। लेकिन उन्होंने कोई संतोष जनक जवाब नहीं दिया। बाद में निराश होकर कपिल ने रुड़की गंगनहर कोतवाली में एक तहरीर दी। पुलिस अभी जांच की बात कहकर इतने बड़े मामले को गोल मोल करने के प्रयास में लगी हुई है। पुलिस में तहरीर देने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने मृतक सतीश का एक और डेथ सर्टिफिकेट जारी कर उसके घर भेजा है, जिसमे उसके मृत्यु के समय को 9. 34 बजे दर्शाया गया है, जो कि अस्पताल प्रबन्धन पर कई बड़े सवाल खड़े करता है।

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