अच्छी समझ को दीमक की तरह खा जाता है अवसाद

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हरिद्वार। चिंता का विकृत रूप ही अवसाद है। अवसाद व्यक्ति के सोचने-समझने की शक्ति पर ऐसा प्रहार करता है कि व्यक्ति समाधान से जुडे सभी रास्ते एक के बाद एक स्वतः ही बंद कर लेता है। अन्त में अज्ञानता की अंधेरी कोठरी मंे जा बैठता है जहां व्यक्ति के पास अच्छी समझ पहुंचने के प्रयास समाप्त हो जाते है।ं इसके दुस्परिणाम के कारण ही समाज मे आत्म हत्याएं जैसी घटनाएं बढती जा रही है। गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विशेषज्ञ एवं मनोवैज्ञानिक डॉ. शिव कुमार ने स्टेªस मैनेंजमेंट डयूरिंग कोविड-19 विषय पर आयोजित एक अन्तर्राष्ट्रय वेबिनार मंे यह बात कही। उन्हांेने कहाकि समाज में बढते भौतिक आकर्षण के प्रभाव तथा उनकी प्राप्ति मंे विफल होने पर व्यक्ति अवसाद से ग्रसित हो जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप व्यक्ति मंे अच्छी समझ कम होती जाती है और काल्पनिक समझ हावी हो जाती है। यह अवसाद अच्छी समझ को दीमक की तरह खा जाता है। इसके समाधान के लिए उन्होंने पारिवारिक एवं सामाजिक जागरूकता फैलाने पर जोर दिया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, आगरा के सरस्वती पीजी कॉलेज, हाथरस द्वारा अन्तर्राष्ट्रय वेबिनार भारत सरकार के युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय की अधिकृत संस्था नेशनल स्पोटर्स प्रमोशन आर्गनाइजेशन तथा फिजिकल एजूकेशन फाउन्डेशन ऑफ इण्डिया के संयुक्त तत्वावधान में ऑनलाईन आयोजित की थी। जिसमें प्रतिभाग करते हुए डॉ शिव कुमार ने अवसादः समस्या एवं समाधान विषय पर अपनी बात रखी। इस अवसर पर फिजिकल एजूकेशन फाउन्डेशन ऑफ इण्डिया के राष्ट्रीय सचिव डॉ. पीयूष जैन, कॉलेज प्रिंसिपल डॉ0 जगदीश यादव, आयोजन सचिव डॉ. स्वतेंन्द्र सिंह, सहित शारीरिक शिक्षा जगत के विद्वान एवं छात्र उपस्थित रहे।

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